दोस्तों अक्सर वर्षा ऋतु में छतरी नुमा आकार के विभिन्न प्रकार एवं रंगों के पौधों जैसी संरचनाएं या आकृतियां खेतों या जंगलों तथा घरों के आसपास दिखाई देते है जिन्हे हम मशरुम या खुम्भ कहते है। ये मशरूम एक प्रकार के फफूंद होते है जिनका उपयोग आदिकाल से हमारे पूर्वज भोजन तथा रोगों की रोकथाम के लिए प्रयोग करते रहे है प्रकृति में लगभग 14-15 हजार प्रकार के मशरुम पाए जाते है। लेकिन सभी मशरुम खाने योग्य नहीं होते है। इनमे से कई प्रजातियां जहरीली भी होती है, अतः बिना जानकारी के जंगली मशरूमों को नहीं खाना चाहिए। इन्ही में से एक ढींगरी प्रजाति की मशरुम जो पुरानी लकड़ी, सूखे पेड़ तथा पेड़ की बाहरी खाल पर बारिश के बाद देखे जा सकते। ढींगरी प्रजाति की मशरुम एक शाकाहारी पौस्टिक खाने योग्य मशरुम होती है।
हमारे देश में मुख्यतः चार प्रकार की मशरुम की खेती की जाती है। जैसे की बटन मशरुम , ढींगरी मशरुम , मिल्की मशरुम , तथा धान पुआल मशरुम आदि।
हमारे देश में भिन्न भिन्न प्रकार की जलवायु तथा ऋतुओं के अनुसार वातावरण में तापमान तथा नमी रहती है, इसको ध्यान में रख कर हम विभिन्न प्रकार की मशरूमों की खेती भिन्न भिन्न मौसम के अनुसार कर सकते है। वैसे हमारे देश की जलवायु ढींगरी मशरुम के लिए बहुत ही अनुकूल है , तथा पूरे साल हम ढींगरी मशरुम की खेती कर सकते है।
आने वाले समय में इसका उत्पादन निरंतर बढ़ने की संभावना है , जैसा की आप जानते है भारत के कृषि प्रधान देश है अतः यहां कृषि फसलों का उत्पादन बहुतायत में होता है। इन कृषि फसलों के व्यर्थ अवशेषों जैसे भूसा , पुआल , तथा पत्ते जो की गेहूं चावल ज्वर बाजरा मक्का गन्ना तथा कई प्रकार की अन्य फसलों से प्राप्त किये जाते है। इनमे से कुछ का प्रयोग पशुओं के खाने के काम आता है। लेकिन कई फसलों के अवशेषों का कोई उपयोग नहीं होता है तथा किसान भाई इन्हे खेत में ही जला देते है। जिसका कुप्रभाव हमारे जीवन तथा वातावरण पर आसानी से देखा जा सकता है। मशरुम की खेती एक ऐसा साधन है जिससे इन कृषि अवशेषों को प्रयोग कर किसान भाई अपने परिवार को पौस्टिक भोजन देने के साथ साथ अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकते है। आज मशरुम की खेती पुरे भारत में हो रही है। ढींगरी मशरुम की विशेषता यह है की इसे किसी भी प्रकार की कृषि अवशिष्टों पर बहुत ही आसानी से उगाया जा सकता है इसका फसल चक्र भी बहुत कम होता है। 45 से 60 दिन में इसकी फसल ली जा सकती है , ढींगरी मिषरूम को पूरे साल सर्दी हो या गर्मी आसानी से सही प्रजाति का चुनाव कर उगाया जा सकता है।
ढींगरी उत्पादन करने की आसान विधि :- ढींगरी उत्पादन के लिए हमें एक साधारण उत्पादन कक्ष (कमरे) की जरूरत होती है। जिसे बांस , या कच्ची ईटों , पॉलीथीन तथा पुआल से बनाया जा सकते है। ये किसी भी साइज के बनाये जा सकते है जैसे 18x15x10, फुट के कमरे या कच्ची झोपडी में 300, से 400, बैग रखे जा सकते है , इस बात का ध्यान रखना चाहिए की हवा के लिए उचित प्रबंध हो , उत्पादन कक्ष (कमरे) में नमी 85-90प्रतिशत बनाय रखने के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
जैसा की ढींगरी मशरुम उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार के कृषि अवशेषों का प्रयोग किया जा सकता है , इसके लिए जरूरी है के भूसा या पुआल ज्यादा पुराना तथा सड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। जिन पौधों के अवशेषों सख्त तथा लम्बे हो उन्हें 2 से 3 से मि साइज में काट कर इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
कृषि अवशेषों में कई प्रकार के हानिकारक सूक्षजीव, फफूंद तथा बक्टेरिया आदि कई प्रकार के जीवाणु हो सकते है। अतः सबसे पहले कृषि अवशेषों को जीवाणुरहित किया जाता है जिसके लिए आसान उपचार विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
1. गरम पानी द्वारा उपचार :- इस विधि में कृषि अवशेषों को छिद्रदार जूट के थैले या बोरे में भर कर रात भर के लिए गीला किया जाता है तथा अगले दिन इसे गरम पानी (60-70, डिग्री) द्वारा उपचारित किया जाता है। तथा ठंडा करने के बाद मशरुम का बीज मिलाया जाता है। घरेलु स्तर पर उत्पादन के लिए यह विधि उपयोग में लाइ जा सकती है।
2. रासायनिक विधि द्वारा :- यह विधि घरेलु तथा व्यावसयिक स्तर पर उत्पादन के लिए बहुत अधिक उपयोग की जाती है। इस विधि में कृषि अवशेषों को विशेष प्रकार के रसायन द्वारा जीवाणु रहित किया जा सकता है। इस विधि में एक 200, लीटर के ड्रम या टब में 90, लीटर पानी में लगभग 12-14, किलो सूखे भूसे को गीला किया जाता है तथा एक दूसरी बाल्टी में 10, लीटर पानी में 5,ग्राम बाविस्टीन तथा फॉर्मलीन 125, मि ली का घोल बना कर भूसे वाले ड्रम के ऊपर उड़ेल दिया जाता है। तथा ड्रम को पॉलीथीन शीट या ढक्कन से अच्छी तरह बंद कर दिया जाता है। लगभग 12-14, घंटे बाद इस उपचारित हुये भूसे को बहार निकाल कर किसी प्लास्टिक शीट पर 2-4, घंटों के लिए फैला कर छोड़ दिया जाता है , जिससे भूसे में मौजूद अतरिक्त पानी बाहर निकल जाता है।
3. पास्तुराइज़ेशन विधि :- यह विधि उन मशरुम उत्पादकों के लिए उपयुक्त है जो बटन मशरुम की खाद पास्तुराइज़ेशन टनल में बनाते है इस विधि में भूसे को गीला कर लगभग चार फुट चौड़ी आयताकार ढ़ेरी बना दी जाती है। ढ़ेरी को दो दिन बाद तोड़ कर फिर से नई ढ़ेरी बना दी जाती है। जिस प्रकार चार दिन बाद भूसे का तापमान 55 से 65 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। इसके बाद भूसे को पास्तुराइज़ेशन टनल में भर दिया जाता है। टनल का तापमान ब्लोअर द्वार एक सामान करने के पश्चात बॉयलर से 4-5, घंटे टनल में भाप छोड़ा जाता है। उसके पश्चात भूसे को ठंडा किया जाता है और बिजाई कर दी जाती है।
विजाई करने की विधि :- ढींगरी मशरुम के बाज हमेशा ताजा प्रयोग करने चाहिए जो 30 दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए एक क्वेंटल सूखे भूसे के लिए दस किलो बीज की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस सजोर काजू , प्लूरोटस फ्लाबेलेट्स, प्लूरोटस सेपीडस , प्लूरोटस जामोर आदि किस्मों को उगाना चाहिए, सर्दियों में जब वातावरण 20 डिग्री से निचे हो तो प्लूरोटस फ्लोरिडा , प्लूरोटस कार्नुकोपीया , आदि का चुनाव करना चाहिए। बिजाई से दो दिन पहले कमरे को दो प्रतिशत फॉर्मलीन से उपचारित करना चाहिए। प्रति 400 ग्राम गीले भूसे में 100 ग्राम की दर से बीज मिलाना चाहिए।बीज मिश्रित भूसे को पॉलिथीन में भर कर बंद कर देना चाहिए , तथा इसके चारों तरफ छोटे छोटे छेद कर देने चाहिए जिससे सही नमी व तापमान बना रहे।
बिजाई के बाद सभी थैलों
को उत्पादन कक्ष में रख दिया जाता है , व कमरे के तापमान व नमी का प्रत्येक दिन निरिक्षण
किया जाता है। बिजित बैगों पर भी ध्यान दिया
जाता है के बीज फ़ैल रहा है या नहीं , बीज फैलते समय हवा पानी अथवा प्रकाश की आवकश्यता
नहीं होती है। अगर कमरे का तापमान 30 डिग्री
से अधिक बढ़ने लगे तो कमरे में फुवारे की सहायता से पानी का छिड़काव करना चाहिए जिससे
तापमान नियंत्रित किया जा सके, ध्यान रखें बैगों में पानी जमा नहीं होना चाहिए , लगभग
15 से 20 दिनों में मशरुम का कवक जाल पुरे भूसे में फ़ैल जाएगा, दिन में दो तीन बार पानी का छिड़काव करें , बीज फैलने
के बाद कमरे में 6-8 घंटे प्रकाश देना चाहिए , खिड़कियों या लाइट का प्रबंध पहले ही
किया जाना चाहिए , उत्पादन कक्ष में प्रतिदिन दो तीन बार खिड़कियां खुली रखनी चाहिए
तथा एक्सॉस्ट फैन भी चलना चाहिए जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 800 पीपीऍम से
अधिक न हो , ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड से मशरुम का डंठल बड़ा
हो जाता है तथा छतरी छोटी रह जाती है, बीज
फैलने के लगभग के सप्ताह बाद मशरुम की छोटी छोटी कलिकाएं बनकर तैयार हो जाती है , तथा
दो तीन दिन में मशरुम आपने पूर्ण आकार ले लेती है।