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शहरी खेती Urban Farming and Hydroponic Farming Technique

स्पष्ट रूप से शहरी कृषि, शहरी खेती, या शहरी बागवानी , वह कार्य या व्यवसाय है, जिसे अब सिर्फ गाँव ही नहीं बड़े बड़े आधुनिक शहरों में भी किया जा सकता है।

खेती के लिए पर्याप्त भूमि न होने के बावजूद इस कार्य या व्यवसाय को छोटे शहरों या गाँव में भी आसानी से किया जा सकता है जो आसानी से भोजन की दैनिक मांग को पूरा कर सकते है।

पारम्परिक खेती में बढ़ते कीटनाशकों का प्रयोग और प्रकृति से प्रेम का शहरों में रहने वाले लोगो को इस और आकर्षित कर रहा है। जो उच्च गुणवत्ता के फल सब्जियों आदि की कमी को पूरा करने के लिए एक बहुत ही अच्छा विकल्प बनता जा रहा है आने वाले समय में शहरी खेती, या शहरी बागवानी खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण स्रोत बनने वाले है।
शहरी खेती शहर में अपने निजी अहाते, छोटे भूखंडों से लेकर बड़े पैमाने में व्यवसायिक रूप में किया जा सकता है एक अध्यन के मुताबिक दुनिया भर में लाखो लोग शहरी खेती, में नई नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर के नए आयाम प्रस्तुत कर रहे है।

आमतौर पर जल, और वायु  द्वारा आधारित आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक शहरी खेती भूमि सुरक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है ।

इसे अधिकांश शहरों में छोटी-छोटी खाली जगहों या छतों में अंदर या बाहर, हाइड्रोपोनिक्स तकनीक द्वारा बड़ी ही सुगमता से गुणवत्ता पूर्ण भोजन का उत्पादन करने के लिए बहुत आसानी से किया जा रहा है। भोजन और ऊर्जा दोनों की बर्बादी भी कम की जा सकती है। आमतौर पर जहाँ परंपरागत कृषि में पौधों के सफल विकास के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है >हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में उन्हें विकसित करने के लिए मिटटी की आवश्यकता नहीं होती है। हाइड्रोपोनिक्स में पौधे  25-30% तेजी से  विकास अधिक मात्रा में फ़सल उत्पादन करते है।

शहरी कृषि के इस आधुनिक मॉडल को व्यावसायिक रूप में अपना कर आपने आप को आर्थिक रूप से सदृढ़ भी किया जा सकता है।

भविष्य के लिए, हाइड्रोपोनिक्स  सिस्टम से जुड़ना एक स्मार्ट निवेश है।>हाइड्रोपोनिक्स और संबंधित नौकरियां या व्यवसाय देश में सबसे तेजी से बढ़ रहे है, और भविष्य में शहरी कृषि सार्वजनिक और निजी दोनों छेत्रों ,के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।

शहरी खेती विशेष रूप से शहरों में रहने वाले लोगों के लिए खाद्य उत्पादन और प्रकृति के साथ जुड़े रहने का अद्भुद और अद्वितीय अवसर प्रदान करने के साथ साथ नए उद्यमशीलता की गतिविधियों में वृद्धि और नौकरियों के सृजन के साथ-साथ खाद्य लागतों को कम करने और उनकी  गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करती है।

शहरी कृषि व्यक्तियों के सामाजिक और भावनात्मक कल्याण पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकती है। शहरी उद्यान अक्सर ऐसे स्थान होते हैं जो सकारात्मक सामाजिक संपर्क और आपसी सामाजिक सुरक्षा पैदा में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वैज्ञानिक तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक्स में उत्पन किये गए फल, सब्जियां आदि उत्पाद, स्टोर किये गए खाद्यों  की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी माने जाते है।


शहरी कृषि कम आय वाले लोगो के लिए भी हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम द्वारा बागवानी करना आर्थिक दृस्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है


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कोर्स में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता मिलेगी, की यह तकनीक क्या है और कैसे कार्य करती है । और कैसे आप आसानी से इस विधि का प्रयोग आपने घर में लाभ ले सकते है।
इसमें आपको बताएँगे के कैसे पौधों के लिए विशिष्ट पोषक घोल (खाद) तैयार किया जाता है, किन किन खादों और पोषक तत्वों की पौधों को कब जरूरत होती है , और पोधों की जरूरत के मुताबिक़ सही मात्रा में आप खुद आपने हाथो से इसे तैयार कर सकेंगे , दोस्तों इसके लिए लिए आपको सिर्फ सहयोग राशि के रूप में मात्र रु 199/- देने होंगे । तो आज ही डाउनलोड करें ऑनलाइन फुल कोर्स।
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ब्रोकली की खेती

ब्रोकली की खेती ठीक फूल गोभी की तरह ही की जाती है। इसके बीज पौधे देखने लगभग फूल गोभी की तरह ही होते है ।  ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी छोटी हरी कलिकाओं का गुच्छा होता है। जो फूल खिलने से पहले पौधे से काट लिया जाता है।  यही खाने के काम आता है। फूल गोभी  जहां एक पौधे से एक फूल मिलता  है वहां ब्रोकली के पौधे से एक गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखाय निकलती  हैं तथा इन शाखाओं से बाद ब्रोकली के छोटे गुच्छे  बेचने अथवा खाने के लिए  हो जाते है|

ब्रोकली फुल गोभी की तरह ही होती है लेकिन  इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उर भारत के मैदानी भागों जाड़े के दिनों इन की खेती बड़ी सुगमता पूवक  की जा सकती है जबिक हिमाचल देश , उत्तराखंड और जम्मू कशमीर में  इनके बीज भी बनाए जा सकते है|
जलवायु
ब्रब्रोकली के लिए ठंडी और जलवायु की आवकता होती है यिद दिन  अपेाकृ छोटे हों तो फूल की बढ़ोरी अिधक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अिधक होने से फूल चित्रेदार, और पत्ते पीले हो जाते है |
मिटटी
इस फ़सल की खेती कई कार की मिटटी की जा सकती है लेकिन  सफ़ल खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी उपयुक्त है| जैविक खाद डालकर भी  इसकी खेती की जा सकती है|
जातियां
ब्रोकली की मुख्य तीन किस्में होती है हरी, स्वेत और बैंगनी
इनमे हरे रंग की  शीष वाली  अिधक पसंद की जाती है
लगाने का समय 
उर भारत के मैदानी भागों ब्रोकली उगाने का उपयु समय का मौसम होता है इसके बीज के अंकु रण तथा पौधों को अी वृ के लिए तापमान 20 -25 डिग्री से होना चाहिए  इसकी नर्सरी  तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाडा होता है परवर्तीय भागों में सितम्बर अक्टूबर में, कम उचाई वाले भागों में अगस्त सितम्बर और अधिक उचाई वाले भागो में मार्च अप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है
बीज दर
गोभी की भाँती  ब्रब्रोकली के बीज बत छोटे होते है एक हैक्टयर  की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम  बीज पर्याप्त होता है |
नसरी तैयार करना
ब्रोकली की  गोभी की तरहैं पहले नसरी तैयार करते है और बाद रोपण किया  जाता है. और पाले से बचाने के लिए घर फूस से ढक दिया जाता है ।

रोपाई
नसरी जब पौधे 8-10 या 4 साहैं के हो जाय तो उनको तैयार खेत कतार से कतार , पंगति से पंगति में 15 से 60 से. मी. का अर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 स०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें| रोपाई करते समय मिटटी पया नमी होनी चाहिए  तथा रोपाई के बाद सिंचाई  अवश्य करें  

निराई -गुड़ाई सिंचाई 
मिटटी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल लगभग 10-15 दिन  के अर पर ही सिंचाई  की आवकता होती है|
खरपतवार
ब्रोकली की जड़ एवं पौधों की बढ़वार के लिए  के लिए क्यारी में  से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए,  गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है, गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है |
कीड़े बीमारयाँ
काला सडन, तेला, तना सडन ,मृदु रोमिल रोग यह मुख्य बीमारियां है |
रोकथग्राम 
इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मट्ठे में  2 किलो नीम की खली 100 ग्राम तमाकू की पट्टी और एक किलो धतूरे की पट्टी हो 2 ली. पानी के साथ उबाल जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान कर मट्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में  जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं मिश्रण को पम्प द्वारा फसल पर छिड़काव करें

कटाई उपज

रोपण के 65-70 दिन बाद फसल तैयार हो जारी है इसके फूल को तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें देर से कटाई करने पर गुच्छा बिखर जाता है 12 से 15 टन प्रति हेक्टेअर फसल की उपज ली जा सकती है
 ठीक फूल गोभी की तरह ही की जाती है। इसके बीज पौधे देखने लगभग फूल गोभी की तरह ही होते है ।  ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी छोटी हरी कलिकाओं का गुच्छा होता है। जो फूल खिलने से पहले पौधे से काट लिया जाता है।  यही खाने के काम आता है। फूल गोभी  जहां एक पौधे से एक फूल मिलता  है वहां ब्रोकली के पौधे से एक गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखाय निकलती  हैं तथा इन शाखाओं से बाद ब्रोकली के छोटे गुच्छे  बेचने अथवा खाने के लिए  हो जाते है|

ब्रोकली फुल गोभी की तरह ही होती है लेकिन  इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उर भारत के मैदानी भागों जाड़े के दिनों इन की खेती बड़ी सुगमता पूवक  की जा सकती है जबिक हिमाचल देश , उत्तराखंड और जम्मू कशमीर में  इनके बीज भी बनाए जा सकते है|
जलवायु
ब्रब्रोकली के लिए ठंडी और जलवायु की आवकता होती है यिद दिन  अपेाकृ छोटे हों तो फूल की बढ़ोरी अिधक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अिधक होने से फूल चित्रेदार, और पत्ते पीले हो जाते है |
मिटटी
इस फ़सल की खेती कई कार की मिटटी की जा सकती है लेकिन  सफ़ल खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी उपयुक्त है| जैविक खाद डालकर भी  इसकी खेती की जा सकती है|
जातियां
ब्रोकली की मुख्य तीन किस्में होती है हरी, स्वेत और बैंगनी
इनमे हरे रंग की  शीष वाली  अिधक पसंद की जाती है
लगाने का समय 
उर भारत के मैदानी भागों ब्रोकली उगाने का उपयु समय का मौसम होता है इसके बीज के अंकु रण तथा पौधों को अी वृ के लिए तापमान 20 -25 डिग्री से होना चाहिए  इसकी नर्सरी  तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाडा होता है परवर्तीय भागों में सितम्बर अक्टूबर में, कम उचाई वाले भागों में अगस्त सितम्बर और अधिक उचाई वाले भागो में मार्च अप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है
बीज दर
गोभी की भाँती  ब्रब्रोकली के बीज बत छोटे होते है एक हैक्टयर  की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम  बीज पर्याप्त होता है |
नसरी तैयार करना
ब्रोकली की  गोभी की तरहैं पहले नसरी तैयार करते है और बाद रोपण किया  जाता है. और पाले से बचाने के लिए घर फूस से ढक दिया जाता है ।

रोपाई
नसरी जब पौधे 8-10 या 4 साहैं के हो जाय तो उनको तैयार खेत कतार से कतार , पंगति से पंगति में 15 से 60 से. मी. का अर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 स०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें| रोपाई करते समय मिटटी पया नमी होनी चाहिए  तथा रोपाई के बाद सिंचाई  अवश्य करें  

निराई -गुड़ाई सिंचाई 
मिटटी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल लगभग 10-15 दिन  के अर पर ही सिंचाई  की आवकता होती है|
खरपतवार
ब्रोकली की जड़ एवं पौधों की बढ़वार के लिए  के लिए क्यारी में  से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए,  गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है, गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है |
कीड़े बीमारयाँ
काला सडन, तेला, तना सडन ,मृदु रोमिल रोग यह मुख्य बीमारियां है |
रोकथग्राम 
इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मट्ठे में  2 किलो नीम की खली 100 ग्राम तमाकू की पट्टी और एक किलो धतूरे की पट्टी हो 2 ली. पानी के साथ उबाल जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान कर मट्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में  जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं मिश्रण को पम्प द्वारा फसल पर छिड़काव करें |
कटाई उपज

रोपण के 65-70 दिन बाद फसल तैयार हो जारी है इसके फूल को तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें देर से कटाई करने पर गुच्छा बिखर जाता है 12 से 15 टन प्रति हेक्टेअर फसल की उपज ली जा सकती है

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