दोस्तों जैसा की आप जानते है, कृषि से मिलने वाले फसल अवशेष जैसे की भूसा, आदि कम घनत्व वाले रेशे होते हैं, इनमें प्रोटीन, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट, खनिज एवं विटामिन कम मात्रा में पाए जाते हैं गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों मापदंडों के हिसाब से देश में फीड की कमी है जो कि पशुधन विकास में एक मुख्य बाधा है।
हर साल देश में पानी की भी कमी होती जा रही है, और हमारे खेती का आधार समझे जाने वाले जानवरो के हरे चारे कि समस्या दिन प्रति दिन बढती जा रही है । हमारे देश मे दूध कि मांग भी बहुत ज्यादा है, और ज्यादा दूध उत्पादन करने के लिये हरे चारे कि हमें बहुत आवश्यकता है ।
इसलिये हमे हरा चारा उत्पादन के लिये कुछ अच्छे उपाय कि जरुरत है । इन्ही उपायो में से एक है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन हमारे लिये हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन एक अच्छा और कारगर विकल्प साबित हो सकता है ।
तो चलिए जानते है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन के बारे मे।
क्या है हाइड्रोपोनिक्स चारा उत्पादन और कैसे हम इसे बिना मिटटी के उत्पादन कर सकते है।
दोस्तों बिना मिट्टी के नियंत्रित तापमान में पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते है. मुख्य रूप से हाइड्रोपोनिक्स चारा प्लास्टिक की छिद्रयुक्त ट्रे में उगाया जाता है।
मक्का, ज्वार या बाजरा के दानो को 15 से 30 डिग्री सेल्सिअस तापमान पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता मे उगाया जाता है. ये चारा 7 से 8 दिन मे तैयार हो जाता है ।
हाइड्रोपोनिक्स में चारा उत्पादन भौगोलिक स्थिति, क्षेत्र के वातावरण एवं बीज की उपलब्धता पर निर्भर करता है। उत्पादन के लिये बोए गए बीज साफ, साबुत, जीवाणु रहित एवं अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिए। अगर यह कार्य नियंत्रित तापमान में किया जाय तो इस तकनीक से बहुत अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है ।
इसमें बीजों को पानी में भिगोया जाता है, जिससे की बीज का अंकुरण शुरू हो सके और बीज आसानी से वृद्धि कर पौधा तैयार कर सके। सामान्यत: बीजों को जूट के थैलों में रखकर अच्छी तरह से बंद करके उन्हें भिगो कर 1 से 2 दिन के लिये रखा जा सकता है, ये बीज अब अंकुरित हो चुके होते हैं इसके बाद इन्हें प्लास्टिक की ट्रे में फैलाया जाता है ।
अंकुरित बीजों की सिंचाई दिन में कई बार की जाती है । इसमें इस बात का ध्यान रखना होता है की पौधे की जड़ें हमेशा भीगी हुई रहे।
छोटे ग्रीन चारा उत्पादन
की सिंचाई के
लिए साधारण स्प्रे
या पम्पिंग स्प्रे
का उपयोग किया
जाता है ।
परंतु अगर बड़ी
इकाई है तो
आटोमेटिक स्प्रेयर उपयोग में
लाए जा सकते
हैं।
एक किलोग्राम मक्का की घास पैदा करने के लिये 1 लीटर (अगर पुन:) उपयोग में ले लिया जाये) से लेकर 3.0 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
अपनी आवश्यकता के अनुसार 2 फिट बाय 1.5 फिट के ट्रे ले, या आपको जितना चारा उगाना है उस हिसाब से आप ट्रे ले सकते है ।
ट्रे मे अंकुरित बीज फैलाकर आप इन्हे 6 से 7 फिट एक के ऊपर एक ऊंचाई पर रख सकते है । ऊंचाई दूरी एक से डेढ़ फुट की होनी चाहिए ।जिससे कम जगह में ज्यादा उत्पादन ले सकते है।
अंकुरित बीजो पर 7 से 10 दिन तक दिन मे 6 से 8 बार पानी का स्प्रे करते रहे । एक ट्रे मे 1 किलो बीज से हमे 10 किलो तक का 6 से 8 इंच तक लंबा हरा चारा आपको मिल जायेगा ।
यह चारा दुधारु पशुओं के लिये बहुत उपयोगी होता है। चारा पौष्टिक होने के कारण दुध मे बढोतरी होती है । कम लागत वाले घरेलु ग्रीन हाउस में 1 किलोग्राम मक्का से 7 से 10 दिनों में 8 से 10 किलोग्राम मक्का का चारा उगाया जा सकता है।
30-300 किलोग्राम ताजा चारा उगाने के लिये लगाई गयी इकाई में लगभग 2000 से 50,000 तक लागत आ सकती है ।
हाइड्रोपोनिक्स विधि से चारा उत्पादन करने के फायदे
ऐसे क्षेत्रों में जहाँ भूमि या पानी की कमी होती है वह इस विधि से सफलता पूर्वक उत्पादन किया जा सकता है। क्योंकि इसमें सामान्य कृषि से कम पानी खर्च होता है एवं एक बार उपयोग में लिए गए पानी को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।
1. इससे हरा चारा अधिक प्राप्त किया जा सकता है।
2. इसमें कीट का खतरा नहीं रहता है।
3. चारे को आसानी से हार्वेस्ट किया जा सकता है।
4. पोषक तत्वों को नियंत्रित मात्रा में पानी के साथ ही घोल कर डाला जाता है,
इसलिए किसी प्रकार की अतरिक्त खाद प्रयोग नहीं किया जाता।
हाइड्रोपोनिक्स विधि द्वारा उत्पादन के लिए जिन ढांचों का उपयोग किया जाता हैं, उन्हें ग्रीन हाउस कहते हैं ये ग्रीन हाउस दो प्रकार के होते हैं ।
1. हाईटेक ग्रीन हाउस चारा इकाई
2. साधारण या कम खर्च वाले ग्रीन हाउस चारा इकाई
यह आसानी से कम लागत में तैयार किया जा सकता है एवं इसे छोटे किसान भी आराम से लगा सकते हैं इस इकाई के ढाँचे को बांस, लकड़ी, लोहे या PVC पाइप्स आदि से सेल्फ बना कर ढांचा तैयार किया जा सकता है।
इसमें सिंचाई के लिये हाथ से चलाये जाने वाले छोटे-छोटे फव्वारे जो कि आटोमेटिक भी हो सकते हैं, उपयोग में लाये जाते हैं। चूंकि ये वातानुकूलित नहीं होते है । उचित तापमान का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है ।
दिनों के अनुसार चारे का वृद्धि चक्र
1. पहला दिन – पहले दिन पानी में भिगोये हुए बीजों को ट्रे में जो कि शेल्फ में रखी होती हैं, में सामान रूप से फैला दिया जाता है।
2. दूसरा दिन – दूसरे दिन बीज अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं।
3. तीसरा और चौथा दिन – जड़ों का एक कालीन नुमा गुथा हुआ जाल दिखाई देने लगता है।
4. पांचवा एवं छठा दिन – जड़ों एवं तने की पूर्ण वृद्धि दिखा देने लगती है।
5. सांतवा या आठवां दिन – इसे फीडिंग डे कहा जाता है, इस समय 8-10 इंच वृद्धि हो जाती है एवं इस समये हरे चारे को ट्रे से निकालकर पशुओंको खिलाया जा सकता है।
हाइड्रोपोनिक्स विधि से उगाये गए चारे की विशेषताएं
1. यह ऊर्जा से भरपूर होता है।
2. इसमें अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन पाया जाता है।
3. यह चारा हरा, पौष्टिक, स्वादिष्ट व् आसानी से पचने वाला होता है।
4. इस चारे में विटामिन, खनिज एवं उत्प्रेरक भरपूर होते हैं।
5. इसमें नमी की मात्रा अधिक होने से जानवरों में पेट की समस्या नहीं होती
6. विभिन्न प्रयोगों से देखा गया है कि इसे खिलाने से दूध उत्पादन में 8 से 13.7 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है
7. पशुओं
को दिए जाने
वाले फीड में
अगर यह चारा
मिलाया जाये तो
वह 5 प्रतिशत अधिक पाचन
योग्य प्रोटीन एवं
4.9 प्रतिशत अधिक पाचक
पदार्थ प्रदान
करेंगे।
1. हाइड्रोपोनिक प्लैक्टिक ट्रे
2. ट्रे रखने के लिए रैक या स्टैंड
3. पानी का छिड़काव करने के लिए स्प्रेयर पंप
4. ग्रीनहाउस शेड का कपड़ा
5. व घुलनशील पोषक तत्व
दोस्तों यदि आप हाइड्रोपोनिक विधि से
बागवानी करना चाहते है तो आपको प्रत्येक हाइड्रोपोनिक सिस्टम को पूरी तरह
से समझने की आवश्यकता होगी, जो आपके लिए यह निर्धारित करना आसान बनाता है
कि आपके लिए कौन सी प्रणाली सही है।
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