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Urban Farming Soillesss Farming In city हाइड्रोपोनिक्स से कैसे हो सकती है बिना मिट्टी के खेती

 स्पष्ट रूप से शहरी कृषि, शहरी खेती, या शहरी बागवानी , वह कार्य या व्यवसाय है, जिसे अब सिर्फ गाँव ही नहीं बड़े बड़े आधुनिक शहरों में भी किया जा सकता है।


खेती के लिए पर्याप्त भूमि न होने के बावजूद इस कार्य या व्यवसाय को छोटे शहरों या गाँव में भी आसानी से किया जा सकता है जो आसानी से भोजन की दैनिक मांग को पूरा कर सकते है।
https://growhomegarden.blogspot.com/2020/05/hydroponics-e-book-in-hindi.html
पारम्परिक खेती में बढ़ते कीटनाशकों का प्रयोग और प्रकृति से प्रेम का शहरों में रहने वाले लोगो को इस और आकर्षित कर रहा है। जो उच्च गुणवत्ता के फल सब्जियों आदि की कमी को पूरा करने के लिए एक बहुत ही अच्छा विकल्प बनता जा रहा है आने वाले समय में शहरी खेती, या शहरी बागवानी खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण स्रोत बनने वाले है।
शहरी खेती शहर में अपने निजी अहाते, छोटे भूखंडों से लेकर बड़े पैमाने में व्यवसायिक रूप में किया जा सकता है एक अध्यन के मुताबिक दुनिया भर में लाखो लोग शहरी खेती, में नई नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर के नए आयाम प्रस्तुत कर रहे है।

आमतौर पर जल, और वायु  द्वारा आधारित आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक शहरी खेती भूमि सुरक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है ।

इसे अधिकांश शहरों में छोटी-छोटी खाली जगहों या छतों में अंदर या बाहर,  हाइड्रोपोनिक तकनीक द्वारा बड़ी ही सुगमता से गुणवत्ता पूर्ण भोजन का उत्पादन करने के लिए बहुत आसानी से किया जा रहा है। भोजन और ऊर्जा दोनों की बर्बादी भी कम की जा सकती है। आमतौर पर जहाँ परंपरागत कृषि में पौधों के सफल विकास के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है हाइड्रोपोनिक सिस्टम में उन्हें विकसित करने के लिए मिटटी की आवश्यकता नहीं होती है। हाइड्रोपोनिक्स में पौधे  25-30% तेजी से  विकास अधिक मात्रा में फ़सल उत्पादन करते है।

शहरी कृषि के इस आधुनिक मॉडल को व्यावसायिक रूप में अपना कर आपने आप को आर्थिक रूप से सदृढ़ भी किया जा सकता है।

भविष्य के लिए, हाइड्रोपोनिक्स  सिस्टम से जुड़ना एक स्मार्ट निवेश है। हाइड्रोपोनिक्स और संबंधित नौकरियां या व्यवसाय देश में सबसे तेजी से बढ़ रहे है, और भविष्य में शहरी कृषि सार्वजनिक और निजी दोनों छेत्रों ,के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।

शहरी खेती विशेष रूप से शहरों में रहने वाले लोगों के लिए खाद्य उत्पादन और प्रकृति के साथ जुड़े रहने का अद्भुद और अद्वितीय अवसर प्रदान करने के साथ साथ नए उद्यमशीलता की गतिविधियों में वृद्धि और नौकरियों के सृजन के साथ-साथ खाद्य लागतों को कम करने और उनकी  गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करती है।

शहरी कृषि व्यक्तियों के सामाजिक और भावनात्मक कल्याण पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकती है। शहरी उद्यान अक्सर ऐसे स्थान होते हैं जो सकारात्मक सामाजिक संपर्क और आपसी सामाजिक सुरक्षा पैदा में करने   महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वैज्ञानिक तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक्स में उत्पन किये गए फल, सब्जियां आदि उत्पाद, स्टोर किये गए खाद्यों  की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी माने जाते है।


शहरी कृषि कम आय वाले लोगो के लिए भी हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम द्वारा बागवानी करना आर्थिक दृस्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है
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Hydroponics E-Book In Hindi $$ हाइड्रोपोनिक्स विधि का संपूर्ण ज्ञान

हाइड्रोपोनिक्स या जिससे आजकल अर्बन फार्मिंग भी कहा जाता है। मृदा या मिटटी के बिना बागवानी करने के विज्ञान है। हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक ऐसी आधुनिक तकनीक है। जिसमे मिटटी रहित खेती की जाती है , मतलब इस तकनीक में खेती के लिए मिटटी की जरूरत ही नहीं पड़ती । यह हाइड्रोपोनिक ई-बुक हिंदी में सरल भाषा में चित्रों सहित संक्षेप में उपलब्ध है, जो हाइड्रोपोनिक्स के महत्वपूर्ण मुद्दों, तकनीकों, और प्रयोगों को कवर करता है। हाइड्रोपोनिक्स एक आधुनिक खेती पद्धति है जिसमें भूमि के बजाय जल में पौधों को पोषक तत्वों के साथ उगाया जाता है।

यह हाइड्रोपोनिक्स ई-बुक विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करती है, जैसे कि हाइड्रोपोनिक्स के लाभ, इसके प्रकार, सामग्री, सिस्टम और संचालन की विधियां। यह आपको हाइड्रोपोनिक खेती के लिए आवश्यक सामग्री और साधनों की सूची प्रदान करती है, जो आपको अपनी खेती की स्थापना के लिए आवश्यक होगी।

इस हाइड्रोपोनिक्स ई-बुक में आपको समय-समय पर उगाने वाले पौधों के देखभाल, जल संरचना, खाद्य संचय, कीट तथा फसल रोग नियंत्रण और सफाई जैसे विषयों पर विस्तृत निर्देश मिलेंगे। इसके अलावा, आपको समस्याओं का सामना कैसे करना है और उन्हें कैसे सुलझाना है, इसके बारे में भी जानकारी मिलेगी।

यह "हाइड्रोपोनिक्स ई-बुक" हाइड्रोपोनिक्स में रुचि रखने वाले किसानों, बागवानों, और खेती के प्रशंसकों के लिए उपयोगी होगी जो एक नवाचारी और सुरक्षित खेती पद्धति के बारे में अधिक जानना चाहते हैं।

👉 इसमें आप सीखेंगे यह प्रणाली किस प्रकार कार्य करती है। 
👉 विभिन्न प्रकार के हाइड्रोपोनिक सिस्टम के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
👉 हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम का निर्माण कैसे किया जाता है।
👉 पौधों के पोषक तत्व कैसे तैयार किया जाता है।
👉 उचित देखभाल व नुट्रिएंट प्रबंधन।
👉 हाइड्रोपोनिक सेटअप औजारों और उपकरणों के बारे में विस्तृत जानकारी।
👉 व्यावसायिक हाइड्रोपोनिक्स फार्म का निर्माण कैसे किया जाता है।
👉 घरेलू स्तर कैसे शुरू करें।
👉 सब्सिड़ी व लोन कहाँ से प्राप्त करे।
👉 प्रोजेक्ट रिपोर्ट कैसे तैयार करें।

तथा इसके इलावा और भी कई कई महत्वपूर्ण जानकारियां चित्रों सहित सरल भाषा में इस ई बुक में उपलब्ध करवाई गई है ।

आज ही सम्पूर्ण ई बुक डाउनलोड करें, न्यूट्रिएंट फार्मूले के साथ, कैसे पौधों के पोषक तत्व तैयार किया जाता है। आदि कई महत्वपूर्ण जाकारियों से भरपूर, हाइड्रोपोनिक्स ई-बुक मात्र 199/- रुपए में आप इस बुक को डाउनलोड कर सकते है।
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Hydroponics E Book In Hindi

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Plant Nutrient Elements And Their Fertilizers पौधों के प्रमुख पोषक तत्व तथा उनके उर्वरक


जिस प्रकार सभी प्राणीओं को जीवित रहने के लिए भोजन या ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार पौधों को भी उचित विकास व फैलने फूलने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । जो पौधों को विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों द्वारा प्राप्त होते है । इन पोषक तत्वों को पौधे सूर्य के प्रकाश पानी व मिटटी से प्राप्त करते है ।

पौधों के पोषक तत्व  उन तत्वों को कहते हैं। जिससे पौधे जिससे पौधे आपन जीवनचक्र पूरा करते है । तथा सम्पूर्ण विकास कर पाते है ।

इन तत्वों  की कमी को केवल इन्हीं तत्वों के प्रयोग से ही पूरा किया जा सकता है।

पौधों के मुख्य पोषक तत्व  17 प्रकार के होते है  
इनमे 9 मैक्रो या बहुल पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, गंधक, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम है
तथा 8 माईक्रो  या सूक्ष्म पोषक तत्व लोहा, जस्ता, तांबा, बोरोन, मोलिबडीनम, क्लोरीन निक्कल आदि है ।

मिटटी में पोषक तत्वों की कमी उनके उपयोग की दृष्टि मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस पोटेशियम अधिक महत्वपूर्ण होते है
पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वगीकृत किया गया है ।
Macro-Nutrients
Nitrogen (N)       
Phosphorus (P)       
Potassium (K)
       
Secondary Nutrients
Magnesium (Mg)
Sulfur (S)
Calcium (Ca)

Micro-Nutrients

Boron (B), Chlorine (Cl), Manganese (Mn)
Iron (Fe), Nickel (Ni), Copper (Cu)
Zinc (Zn), Molybdenum (Mo)


1. नाइट्रोजन  तत्व
नाइट्रोजन तत् फसलों मे हरापन बनाता है तथा वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देती है। यह फसलों में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। नाइट्रोजन में प्रमुख उर्वरक निम्नलिखित हैं:-
उर्वरक
नाइट्रोजन (प्रतिशत)
यूरिया
46 %
कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट
25-26%
अमोनियम सल्फेट
20%
अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट
26%
कैल्शियम नाइट्रेट
15.5%
सोडियम नाइट्रेट
16%
अमोनिया घोल
20-25%
अमोनिया अनहाइड्रस
82%
अमोनियम फास्फेट
20%

मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

नाइट्रोजन उर्वरकों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये मिट्टी की किस्म तथा विभिन्न फसलों के स्वभाव के अनुसार ही उर्वरकों का चुनाव किया जाना चाहिये। रेतीली जमीन में सिंचाई तथा वर्षा से पहले नाइट्रेट तथा अमाईड उर्वरकों के प्रयोग की अपेक्षा
अमोनियम उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये। खुश्क जमीनों में नाइट्रेट उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये। धान वाली जमीन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अमोनियम अमाइड उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये।
अम्लीय मृदाओं में अमोनियम अमाइड उर्वरकों की अपेक्षा नाइट्रेट उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट कैल्शियम नाइट्रेट प्रयोग करने चाहिये। क्षारीय (नमकीन) गंधक की कमी वाली मृदाओं में अमोनियम सल्फेट उर्वरक अच्छा रहता है। अगर खड़ी फसल में नाइट्रेट का छिड़काव करना हो तो अमाइड उर्वरकों का प्रयोग सबसे अच्छा रहता है।
धान, गन्ना तथा आलू के लिये अमोनियम उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये जबकि तम्बाकू, आलू अंगूर में अमोनियम क्लोराइड का प्रयोग करें। तिलहन दलहनों में अमोनियम सल्फेट अन्य उर्वरकों की अपेक्षा अच्छा रहता है जो नाइट्रोजन के साथ-साथ गंधक की पूर्ति भी करता है।

नाइट्रोजन उर्वरकों के डालने का सही समय विधि

नाइट्रोजन उर्वरकों के सही उपयोग का समय पौधे की तेज वृध्दिकाल अवस्था होती है। प्राय: बिजाई के समय तथा वृध्दि के पहले 25-50 दिनों में प्रयोग करने से अधिक लाभ मिलता है। बिजाई के समय अन्य तत्वों के उर्वरकों के साथ मिलकर बीज से नीचे या बगल में 2 से.मी. की दूरी पर पोरें। रेतीनी जमीनों में सिंचाई के बाद तथा भारी जमीनों में सिंचाई से पहले प्रयोग करें। रेतीली जमीनों में खोदी/गुडाई करके उर्वरकों को मिट्टी में मिला देना चाहिये। सर्दियों में ओंस उतरने के बाद तथा गर्मियों में बरसात में दोपहर बाद उर्वरकों को छिड़कना चाहिये।

2. फास्फोरस तत्व:-

फास्फोरस पौधों में श्वसन क्रिया, प्रकाश संश्लेषण तथा अन्य जैव रासायनिक क्रियाओं के लिये आवश्यक है। जड़ों के विकास, कोशिकाओं के निर्माण, पौधों के फलने फूलने, बीज के निर्माण तथा गुणों में वृद्धि करता है। फास्फोरस कें मुख्य उर्वरक निम्नलिखित हैं-

उर्वरक
पी25 (प्रतिशत)
नाइट्रोजन (प्रतिशत)
सिंगल सुपर फास्फेट (एस.एस.पी.)
16
-
ट्रिपल सुपर फास्फेट
46
-
डाईअमोनियम फास्फेट (डी..पी.)
46
18
मोनो अमोनियम फास्फेट
20
16
मोनो अमोनिया फास्फेट (II)
20
20
यूरिया अमोनियम फास्फेट
28
28
नाइट्रो फास्फेट (सुफला)
32
-
 मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

क्षारीय (पी.एच.> 8.2) वाली भूमि में केवल 80 प्रतिशत से ज्यादा पानी में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक ही डालने चाहिये। अम्लीय भूमि में पानी के अघुलनशील फास्फोरस के उर्वरकों को बिखेरकर प्रयोग करना लाभकारी रहता है। इन मृदाओं में सिटरिक एसिड में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक प्रयोग करने चाहिये।

अत्यधिक अम्लीय मृदाओं में तेजाब घुलनशील फास्फोरस स्रोत जैसे रोक फास्फोरस स्रोत, बोन मील आदि का प्रयोग करें। चूने वाली भूमि में दानेदार जल में 80 प्रतिशत घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक श्रेष्ठ रहते हैं क्योंकि चूने वाले उर्वरकों का स्थिरीकरण शीघ्र और अधिक हो जाता है।

पाऊडर वाले उर्वरकों को अम्लीय भूमि में बिखेरकर मिलाने से अधिक लाभ हो जाता है। कार्बनिक खादों को फास्फोरस के उर्वरकों के साथ प्रयोग करने से उर्वरकों की क्षमता में वृध्दि होती है।

कम अवधि वाली फसलें जिनमें जल्दी शुरूआत करने की जरूरत होती है जैसे गेहूँ, धान, मक्की, सोयाबीन सब्जियों में पानी में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक डालने चाहिये। लम्बी अवधि की फसलों में सिटरिक एसिड में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक डालने चाहिये।

तिलहन में सिंगल सुपर फास्फेट अच्छा रहता है क्योंकि यह गंधक भी पौधों को देता है। गेहूँ में डी..पी. खाद का प्रयोग अच्छा रहता है।

उर्वरक डालने का सही समय विधि

फास्फोरस उर्वरक बिजाई के समय बीज से 2-3 से.मी. गहरा पोरना चाहिये। यदि पोर नहीं कर सकते हैं तो एक-सार बिखेर कर मिट्टी में मिला दें।

3. पोटाशियम तत्व

पोटाशियम पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण की कुशलता में वृद्धि करता है। यह कार्बोहाइड्रेट, पोषक तत्व पानी के स्थानान्तरण में सहायता करता है तथा पौधों में रोगों के प्रति प्रतिरोधिता बढ़ाता है।
पोटाशियम में मुख्य उर्वरक निम्नलिखित है:-
उर्वरक
K2O (प्रतिशत)
म्यूरेट आफ पोटाश
60
पोटाशियम सल्फेट
50

मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

म्यूरेट आफ पोटाश सस्ता तथा आसानी से उपलब्ध होने वाला उर्वरक है। क्षारीय मृदाओं में म्यूरेट आफ पोटाश डालें इनमें पोटाशियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिये। शर्करा तथा स्टार्च वाली फसलों जैसे गन्ना, आलू, केला आदि के लिये अधिक मात्रा में पोटाशियम की आवश्यकता होती है।

अधिक उपज देने वाली धान तथा गेहूँ की फसल को भी पोटाशियम की अधिक आवश्यकता पड़ती है। म्यूरेट ऑफ पोटाश, तम्बाकू, आलू, टमाटर तथा अंगूर आदि फसलों के लिये हानिकारक हो सकता है। इसलिये इन फसलों में पोटाशियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिये। परंतु धान जैसी पानी में खड़ी रहने वाली फसलों में पोटाशियम सल्फेट की बजाय म्यूरेट ऑफ पोटाश अच्छा रहता है।

उर्वरक डालने का समय विधि

पोटाशियम के उर्वरकों को फसलों में बिजाई के समय बीज डालना चाहिये। म्यूरेट आफॅ पोटाश को यूरिया की तरह खड़ी फसल में छिड़क कर भी दिया जा सकता है लेकिन उचित रहेगा कि इसका प्रयोग बिजाई के समय ही किया जाये। हल्की जमीनों में अगर पोटाशियम की अधिक मात्रा डालनी है तो इसको आधा-आधा करके दो बार में डालना चाहिये।

उचित मात्रा में उर्वरक प्रयोग से उत्पादन तथा गुणवत्ता बढ़ाकर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है| उर्वरकों की उचित मात्रा का आकलन उगाई जाने वाली फसल तथा मृदा में पोषक तत्वों की उपस्थित मात्रा के अनुसार किया जाता है| मृदा की जाँच से उपस्थित पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण होता है| अतः मृदा की उत्पादन क्षमता बनाये रखने तथा अच्छी गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादन के लिए एक या दो साल में एक बार मृदा की जाँच आवश्यक है| अनुचित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से मृदा का क्षय, धन हानि तथा पर्यावरण सम्बन्धित समस्याएँ पैदा हो सकती हैं|

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