What is Hydroponics Technology हाइड्रोपोनिक्स क्या है, यह तकनीक किस तरह कार्य करती है ?

मृदा या मिटटी के बिना बागवानी करने के विज्ञान है। जिसे हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है। केवल पानी में या कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं। इसे हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली भी कहा जाता है।
इस प्रणाली में पारंपरिक बागवानी की तुलना में कहीं अधिक, जल्दी  व आसानी से उच्च गुणवत्ता युक्त सब्जियां उगाई जा सकती हैं।

हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दोंहाइड्रो’ (Hydro) तथापोनोस (Ponos) से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है। पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।

हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक आधुनिक तकनीक है जिसका अभिप्राय पानी द्वारा खेती से है
कम जगह होते हुए भी एक स्थायी तरीके से हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम से बड़ी मात्रा में, स्वास्थ्यप्रद भोजन को विकसित किया जा सकता है।

बड़े बड़े शहरों में यह तकनीक बहुत ज्यादा अपनाई जा रही है।  दरअसल, बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण फसल और पौधों के लिये जमीन की कमी भी होती जा रही है।

 हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में आप अपने फ्लैट में या घर के किसी कोने में या छत पर भी बड़े आराम से पौधे और सब्जियाँ आदि उगा सकते हैं।  आम खेती के मुकाबले इस तकनीक में पढ़ने 3 गुना अधिक पैदावार करते है

यह तकनीक लोगों को उन स्थानों पर भी भोजन उगाने की क्षमता प्रदान करता है, जहां पारंपरिक कृषि संभव नहीं है।

आमतौर पर हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में टमाटर, मिर्च, खीरे, लेट्यूस, पालक, बैंगन, शिमला मिर्च, करेला आदि हर प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।

हाइड्रोपोनिक प्रणालियों में पौधों को विभिन्न प्रकार से पोषक तत्व प्रदान किये जाते है जिसमे  कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक या कृत्रिम विधि द्वारा तैयार किये गए पोषक तत्व आदि प्रमुख है। 

हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली कई फायदे भी प्रदान करती है, उनमें से एक है कृषि के लिए पानी के उपयोग में कमी, अर्थार्थ जहाँ साधारण खेती में 1 किलोग्राम टमाटर उगाने के लिए 70 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, हाइड्रोपोनिक्स में  केवल 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

आइए, जानते हैं हाइड्रोपोनिक्स क्या है, यह हमारे लिये कैसे उपयोगी हो सकती है और हमारे देश में कहाँ-कहाँ इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का कई पश्चिमी देशों में फसल उत्पादन के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में भी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से देश के कई क्षेत्रों में बिना जमीन और मिट्टी के पौधे उगाए जा रहे हैं और फसलें पैदा की जा रही हैं। राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियाँ हैं, उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है।

दूरसे शब्दों में कहें तो यह एक आधुनिक तकनीक की खेती जिसमें पौधों की वृद्धि, उत्पादकता पोषक तत्वों, का स्तर पानी द्वारा वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित की जाती है।

खेती करने का यह तरीका बड़े बड़े शहरों और महानगरों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है और आधुनिक कृषि पद्धतियों पर भी इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है,

पौधों की उत्तम वृद्धि और बेहतर उपज व उत्पादन पाने के लिए पानी के साथ-साथ विशिष्ट मात्रा के दिए गए पोषक तत्त्वों द्वारा समृद्ध किया जाता है

हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली के कुछ बुनियादी मुख्य प्रबंधन कार्य की निम्नलिखित है

Plant & Root Support System:- आम तौर पर हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में, पौधे और पौधे की जड़ों को सीधा ऊपर की और बढ़ने के लिए सहारा देने व्यवस्था की जाती है, जिसके  लिए कई माध्यमों और प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है।

Supply of Nutrient:- एक और जहाँ पारंपरिक खेती में पौधे पानी और पोषक तत्त्वों को मिटटी से ग्रहण करते है वहीं हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाया जाता है।

Supply Of Oxygen:- मृदा आधारित खेती में, पौधों को मिट्टी से ऑक्सीजन प्राप्त होता है, परन्तु हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में पौधे पानी से ऑक्सीजन प्राप्त करते है  यह ठीक वैसे ही है जैसे एक्वेरियम टैंक में मछलियों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है।

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इस कोर्स में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता मिलेगी, की यह तकनीक क्या है और कैसे कार्य करती है । और कैसे आप आसानी से इस विधि का प्रयोग आपने घर में लाभ ले सकते है।

इसमें हम आपको बताएँगे के कैसे पौधों के लिए विशिष्ट पोषक घोल (खाद) तैयार किया जाता है, किन किन खादों और पोषक तत्वों की पौधों को कब जरूरत होती है , और पोधों की जरूरत के मुताबिक़ सही मात्रा में आप खुद आपने हाथो से इसे तैयार कर सकेंगे , दोस्तों इसके लिए लिए आपको सहयोग राशि के रूप में मात्र रु 199/- देने होंगे । तो आज ही डाउनलोड करें ऑनलाइन फुल कोर्स।

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Hydroponics

Plant Nutrient Elements And Their Fertilizers पौधों के प्रमुख पोषक तत्व तथा उनके उर्वरक


जिस प्रकार सभी प्राणीओं को जीवित रहने के लिए भोजन या ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार पौधों को भी उचित विकास व फैलने फूलने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । जो पौधों को विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों द्वारा प्राप्त होते है । इन पोषक तत्वों को पौधे सूर्य के प्रकाश पानी व मिटटी से प्राप्त करते है ।

पौधों के पोषक तत्व  उन तत्वों को कहते हैं। जिससे पौधे जिससे पौधे आपन जीवनचक्र पूरा करते है । तथा सम्पूर्ण विकास कर पाते है ।

इन तत्वों  की कमी को केवल इन्हीं तत्वों के प्रयोग से ही पूरा किया जा सकता है।

पौधों के मुख्य पोषक तत्व  17 प्रकार के होते है  
इनमे 9 मैक्रो या बहुल पोषक तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, गंधक, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम है
तथा 8 माईक्रो  या सूक्ष्म पोषक तत्व लोहा, जस्ता, तांबा, बोरोन, मोलिबडीनम, क्लोरीन निक्कल आदि है ।

मिटटी में पोषक तत्वों की कमी उनके उपयोग की दृष्टि मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस पोटेशियम अधिक महत्वपूर्ण होते है
पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वगीकृत किया गया है ।
Macro-Nutrients
Nitrogen (N)       
Phosphorus (P)       
Potassium (K)
       
Secondary Nutrients
Magnesium (Mg)
Sulfur (S)
Calcium (Ca)

Micro-Nutrients

Boron (B), Chlorine (Cl), Manganese (Mn)
Iron (Fe), Nickel (Ni), Copper (Cu)
Zinc (Zn), Molybdenum (Mo)


1. नाइट्रोजन  तत्व
नाइट्रोजन तत् फसलों मे हरापन बनाता है तथा वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देती है। यह फसलों में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। नाइट्रोजन में प्रमुख उर्वरक निम्नलिखित हैं:-
उर्वरक
नाइट्रोजन (प्रतिशत)
यूरिया
46 %
कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट
25-26%
अमोनियम सल्फेट
20%
अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट
26%
कैल्शियम नाइट्रेट
15.5%
सोडियम नाइट्रेट
16%
अमोनिया घोल
20-25%
अमोनिया अनहाइड्रस
82%
अमोनियम फास्फेट
20%

मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

नाइट्रोजन उर्वरकों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये मिट्टी की किस्म तथा विभिन्न फसलों के स्वभाव के अनुसार ही उर्वरकों का चुनाव किया जाना चाहिये। रेतीली जमीन में सिंचाई तथा वर्षा से पहले नाइट्रेट तथा अमाईड उर्वरकों के प्रयोग की अपेक्षा
अमोनियम उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये। खुश्क जमीनों में नाइट्रेट उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये। धान वाली जमीन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अमोनियम अमाइड उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये।
अम्लीय मृदाओं में अमोनियम अमाइड उर्वरकों की अपेक्षा नाइट्रेट उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट कैल्शियम नाइट्रेट प्रयोग करने चाहिये। क्षारीय (नमकीन) गंधक की कमी वाली मृदाओं में अमोनियम सल्फेट उर्वरक अच्छा रहता है। अगर खड़ी फसल में नाइट्रेट का छिड़काव करना हो तो अमाइड उर्वरकों का प्रयोग सबसे अच्छा रहता है।
धान, गन्ना तथा आलू के लिये अमोनियम उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये जबकि तम्बाकू, आलू अंगूर में अमोनियम क्लोराइड का प्रयोग करें। तिलहन दलहनों में अमोनियम सल्फेट अन्य उर्वरकों की अपेक्षा अच्छा रहता है जो नाइट्रोजन के साथ-साथ गंधक की पूर्ति भी करता है।

नाइट्रोजन उर्वरकों के डालने का सही समय विधि

नाइट्रोजन उर्वरकों के सही उपयोग का समय पौधे की तेज वृध्दिकाल अवस्था होती है। प्राय: बिजाई के समय तथा वृध्दि के पहले 25-50 दिनों में प्रयोग करने से अधिक लाभ मिलता है। बिजाई के समय अन्य तत्वों के उर्वरकों के साथ मिलकर बीज से नीचे या बगल में 2 से.मी. की दूरी पर पोरें। रेतीनी जमीनों में सिंचाई के बाद तथा भारी जमीनों में सिंचाई से पहले प्रयोग करें। रेतीली जमीनों में खोदी/गुडाई करके उर्वरकों को मिट्टी में मिला देना चाहिये। सर्दियों में ओंस उतरने के बाद तथा गर्मियों में बरसात में दोपहर बाद उर्वरकों को छिड़कना चाहिये।

2. फास्फोरस तत्व:-

फास्फोरस पौधों में श्वसन क्रिया, प्रकाश संश्लेषण तथा अन्य जैव रासायनिक क्रियाओं के लिये आवश्यक है। जड़ों के विकास, कोशिकाओं के निर्माण, पौधों के फलने फूलने, बीज के निर्माण तथा गुणों में वृद्धि करता है। फास्फोरस कें मुख्य उर्वरक निम्नलिखित हैं-

उर्वरक
पी25 (प्रतिशत)
नाइट्रोजन (प्रतिशत)
सिंगल सुपर फास्फेट (एस.एस.पी.)
16
-
ट्रिपल सुपर फास्फेट
46
-
डाईअमोनियम फास्फेट (डी..पी.)
46
18
मोनो अमोनियम फास्फेट
20
16
मोनो अमोनिया फास्फेट (II)
20
20
यूरिया अमोनियम फास्फेट
28
28
नाइट्रो फास्फेट (सुफला)
32
-
 मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

क्षारीय (पी.एच.> 8.2) वाली भूमि में केवल 80 प्रतिशत से ज्यादा पानी में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक ही डालने चाहिये। अम्लीय भूमि में पानी के अघुलनशील फास्फोरस के उर्वरकों को बिखेरकर प्रयोग करना लाभकारी रहता है। इन मृदाओं में सिटरिक एसिड में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक प्रयोग करने चाहिये।

अत्यधिक अम्लीय मृदाओं में तेजाब घुलनशील फास्फोरस स्रोत जैसे रोक फास्फोरस स्रोत, बोन मील आदि का प्रयोग करें। चूने वाली भूमि में दानेदार जल में 80 प्रतिशत घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक श्रेष्ठ रहते हैं क्योंकि चूने वाले उर्वरकों का स्थिरीकरण शीघ्र और अधिक हो जाता है।

पाऊडर वाले उर्वरकों को अम्लीय भूमि में बिखेरकर मिलाने से अधिक लाभ हो जाता है। कार्बनिक खादों को फास्फोरस के उर्वरकों के साथ प्रयोग करने से उर्वरकों की क्षमता में वृध्दि होती है।

कम अवधि वाली फसलें जिनमें जल्दी शुरूआत करने की जरूरत होती है जैसे गेहूँ, धान, मक्की, सोयाबीन सब्जियों में पानी में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक डालने चाहिये। लम्बी अवधि की फसलों में सिटरिक एसिड में घुलनशील फास्फोरस के उर्वरक डालने चाहिये।

तिलहन में सिंगल सुपर फास्फेट अच्छा रहता है क्योंकि यह गंधक भी पौधों को देता है। गेहूँ में डी..पी. खाद का प्रयोग अच्छा रहता है।

उर्वरक डालने का सही समय विधि

फास्फोरस उर्वरक बिजाई के समय बीज से 2-3 से.मी. गहरा पोरना चाहिये। यदि पोर नहीं कर सकते हैं तो एक-सार बिखेर कर मिट्टी में मिला दें।

3. पोटाशियम तत्व

पोटाशियम पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण की कुशलता में वृद्धि करता है। यह कार्बोहाइड्रेट, पोषक तत्व पानी के स्थानान्तरण में सहायता करता है तथा पौधों में रोगों के प्रति प्रतिरोधिता बढ़ाता है।
पोटाशियम में मुख्य उर्वरक निम्नलिखित है:-
उर्वरक
K2O (प्रतिशत)
म्यूरेट आफ पोटाश
60
पोटाशियम सल्फेट
50

मृदा फसलों के प्रति अनुकूलता

म्यूरेट आफ पोटाश सस्ता तथा आसानी से उपलब्ध होने वाला उर्वरक है। क्षारीय मृदाओं में म्यूरेट आफ पोटाश डालें इनमें पोटाशियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिये। शर्करा तथा स्टार्च वाली फसलों जैसे गन्ना, आलू, केला आदि के लिये अधिक मात्रा में पोटाशियम की आवश्यकता होती है।

अधिक उपज देने वाली धान तथा गेहूँ की फसल को भी पोटाशियम की अधिक आवश्यकता पड़ती है। म्यूरेट ऑफ पोटाश, तम्बाकू, आलू, टमाटर तथा अंगूर आदि फसलों के लिये हानिकारक हो सकता है। इसलिये इन फसलों में पोटाशियम सल्फेट का प्रयोग करना चाहिये। परंतु धान जैसी पानी में खड़ी रहने वाली फसलों में पोटाशियम सल्फेट की बजाय म्यूरेट ऑफ पोटाश अच्छा रहता है।

उर्वरक डालने का समय विधि

पोटाशियम के उर्वरकों को फसलों में बिजाई के समय बीज डालना चाहिये। म्यूरेट आफॅ पोटाश को यूरिया की तरह खड़ी फसल में छिड़क कर भी दिया जा सकता है लेकिन उचित रहेगा कि इसका प्रयोग बिजाई के समय ही किया जाये। हल्की जमीनों में अगर पोटाशियम की अधिक मात्रा डालनी है तो इसको आधा-आधा करके दो बार में डालना चाहिये।

उचित मात्रा में उर्वरक प्रयोग से उत्पादन तथा गुणवत्ता बढ़ाकर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है| उर्वरकों की उचित मात्रा का आकलन उगाई जाने वाली फसल तथा मृदा में पोषक तत्वों की उपस्थित मात्रा के अनुसार किया जाता है| मृदा की जाँच से उपस्थित पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण होता है| अतः मृदा की उत्पादन क्षमता बनाये रखने तथा अच्छी गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादन के लिए एक या दो साल में एक बार मृदा की जाँच आवश्यक है| अनुचित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से मृदा का क्षय, धन हानि तथा पर्यावरण सम्बन्धित समस्याएँ पैदा हो सकती हैं|

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