ब्रोकली की खेती

ब्रोकली की खेती ठीक फूल गोभी की तरह ही की जाती है। इसके बीज पौधे देखने लगभग फूल गोभी की तरह ही होते है ।  ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी छोटी हरी कलिकाओं का गुच्छा होता है। जो फूल खिलने से पहले पौधे से काट लिया जाता है।  यही खाने के काम आता है। फूल गोभी  जहां एक पौधे से एक फूल मिलता  है वहां ब्रोकली के पौधे से एक गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखाय निकलती  हैं तथा इन शाखाओं से बाद ब्रोकली के छोटे गुच्छे  बेचने अथवा खाने के लिए  हो जाते है|

ब्रोकली फुल गोभी की तरह ही होती है लेकिन  इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उर भारत के मैदानी भागों जाड़े के दिनों इन की खेती बड़ी सुगमता पूवक  की जा सकती है जबिक हिमाचल देश , उत्तराखंड और जम्मू कशमीर में  इनके बीज भी बनाए जा सकते है|
जलवायु
ब्रब्रोकली के लिए ठंडी और जलवायु की आवकता होती है यिद दिन  अपेाकृ छोटे हों तो फूल की बढ़ोरी अिधक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अिधक होने से फूल चित्रेदार, और पत्ते पीले हो जाते है |
मिटटी
इस फ़सल की खेती कई कार की मिटटी की जा सकती है लेकिन  सफ़ल खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी उपयुक्त है| जैविक खाद डालकर भी  इसकी खेती की जा सकती है|
जातियां
ब्रोकली की मुख्य तीन किस्में होती है हरी, स्वेत और बैंगनी
इनमे हरे रंग की  शीष वाली  अिधक पसंद की जाती है
लगाने का समय 
उर भारत के मैदानी भागों ब्रोकली उगाने का उपयु समय का मौसम होता है इसके बीज के अंकु रण तथा पौधों को अी वृ के लिए तापमान 20 -25 डिग्री से होना चाहिए  इसकी नर्सरी  तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाडा होता है परवर्तीय भागों में सितम्बर अक्टूबर में, कम उचाई वाले भागों में अगस्त सितम्बर और अधिक उचाई वाले भागो में मार्च अप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है
बीज दर
गोभी की भाँती  ब्रब्रोकली के बीज बत छोटे होते है एक हैक्टयर  की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम  बीज पर्याप्त होता है |
नसरी तैयार करना
ब्रोकली की  गोभी की तरहैं पहले नसरी तैयार करते है और बाद रोपण किया  जाता है. और पाले से बचाने के लिए घर फूस से ढक दिया जाता है ।

रोपाई
नसरी जब पौधे 8-10 या 4 साहैं के हो जाय तो उनको तैयार खेत कतार से कतार , पंगति से पंगति में 15 से 60 से. मी. का अर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 स०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें| रोपाई करते समय मिटटी पया नमी होनी चाहिए  तथा रोपाई के बाद सिंचाई  अवश्य करें  

निराई -गुड़ाई सिंचाई 
मिटटी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल लगभग 10-15 दिन  के अर पर ही सिंचाई  की आवकता होती है|
खरपतवार
ब्रोकली की जड़ एवं पौधों की बढ़वार के लिए  के लिए क्यारी में  से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए,  गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है, गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है |
कीड़े बीमारयाँ
काला सडन, तेला, तना सडन ,मृदु रोमिल रोग यह मुख्य बीमारियां है |
रोकथग्राम 
इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मट्ठे में  2 किलो नीम की खली 100 ग्राम तमाकू की पट्टी और एक किलो धतूरे की पट्टी हो 2 ली. पानी के साथ उबाल जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान कर मट्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में  जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं मिश्रण को पम्प द्वारा फसल पर छिड़काव करें

कटाई उपज

रोपण के 65-70 दिन बाद फसल तैयार हो जारी है इसके फूल को तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें देर से कटाई करने पर गुच्छा बिखर जाता है 12 से 15 टन प्रति हेक्टेअर फसल की उपज ली जा सकती है
 ठीक फूल गोभी की तरह ही की जाती है। इसके बीज पौधे देखने लगभग फूल गोभी की तरह ही होते है ।  ब्रोकली का खाने वाला भाग छोटी छोटी हरी कलिकाओं का गुच्छा होता है। जो फूल खिलने से पहले पौधे से काट लिया जाता है।  यही खाने के काम आता है। फूल गोभी  जहां एक पौधे से एक फूल मिलता  है वहां ब्रोकली के पौधे से एक गुच्छा काटने के बाद भी , पौधे से कुछ शाखाय निकलती  हैं तथा इन शाखाओं से बाद ब्रोकली के छोटे गुच्छे  बेचने अथवा खाने के लिए  हो जाते है|

ब्रोकली फुल गोभी की तरह ही होती है लेकिन  इसका रंग हरा होता है इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है उर भारत के मैदानी भागों जाड़े के दिनों इन की खेती बड़ी सुगमता पूवक  की जा सकती है जबिक हिमाचल देश , उत्तराखंड और जम्मू कशमीर में  इनके बीज भी बनाए जा सकते है|
जलवायु
ब्रब्रोकली के लिए ठंडी और जलवायु की आवकता होती है यिद दिन  अपेाकृ छोटे हों तो फूल की बढ़ोरी अिधक होती है फूल तैयार होने के समय तापमान अिधक होने से फूल चित्रेदार, और पत्ते पीले हो जाते है |
मिटटी
इस फ़सल की खेती कई कार की मिटटी की जा सकती है लेकिन  सफ़ल खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी उपयुक्त है| जैविक खाद डालकर भी  इसकी खेती की जा सकती है|
जातियां
ब्रोकली की मुख्य तीन किस्में होती है हरी, स्वेत और बैंगनी
इनमे हरे रंग की  शीष वाली  अिधक पसंद की जाती है
लगाने का समय 
उर भारत के मैदानी भागों ब्रोकली उगाने का उपयु समय का मौसम होता है इसके बीज के अंकु रण तथा पौधों को अी वृ के लिए तापमान 20 -25 डिग्री से होना चाहिए  इसकी नर्सरी  तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाडा होता है परवर्तीय भागों में सितम्बर अक्टूबर में, कम उचाई वाले भागों में अगस्त सितम्बर और अधिक उचाई वाले भागो में मार्च अप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है
बीज दर
गोभी की भाँती  ब्रब्रोकली के बीज बत छोटे होते है एक हैक्टयर  की पौध तैयार करने के लिए लगभग 375 से 400 ग्राम  बीज पर्याप्त होता है |
नसरी तैयार करना
ब्रोकली की  गोभी की तरहैं पहले नसरी तैयार करते है और बाद रोपण किया  जाता है. और पाले से बचाने के लिए घर फूस से ढक दिया जाता है ।

रोपाई
नसरी जब पौधे 8-10 या 4 साहैं के हो जाय तो उनको तैयार खेत कतार से कतार , पंगति से पंगति में 15 से 60 से. मी. का अर रखकर तथा पौधे से पौधे के बीच 45 स०मी० का फ़सला देकर रोपाई कर दें| रोपाई करते समय मिटटी पया नमी होनी चाहिए  तथा रोपाई के बाद सिंचाई  अवश्य करें  

निराई -गुड़ाई सिंचाई 
मिटटी मौसम तथा पौधों की बढ़वार को ध्यान में रखकर,इस फ़सल लगभग 10-15 दिन  के अर पर ही सिंचाई  की आवकता होती है|
खरपतवार
ब्रोकली की जड़ एवं पौधों की बढ़वार के लिए  के लिए क्यारी में  से खरपतवार को बराबर निकालते रहना चाहिए,  गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है, गुड़ाई के उपरांत पौधे के पास मिटटी चढ़ा देने से पौधे पानी देने पर गिरते नहीं है |
कीड़े बीमारयाँ
काला सडन, तेला, तना सडन ,मृदु रोमिल रोग यह मुख्य बीमारियां है |
रोकथग्राम 
इसकी रोकथाम के लिए 5ली. देशी गाय के मट्ठे में  2 किलो नीम की खली 100 ग्राम तमाकू की पट्टी और एक किलो धतूरे की पट्टी हो 2 ली. पानी के साथ उबाल जब पानी 1 ली . बचे तो ठंडा करके छान कर मट्ठे में मिला ले 140 ली पानी के साथ (यह पूरे घोल का अनुपात है आप लोग एकड़ में  जितना पानी लगे उस अनुपात में मिलाएं मिश्रण को पम्प द्वारा फसल पर छिड़काव करें |
कटाई उपज

रोपण के 65-70 दिन बाद फसल तैयार हो जारी है इसके फूल को तेज़ चाकू या दरांती से कटाई कर लें देर से कटाई करने पर गुच्छा बिखर जाता है 12 से 15 टन प्रति हेक्टेअर फसल की उपज ली जा सकती है

What is Hydroponics (हाइड्रोपोनिक्स क्या है)


हाइड्रोपोनिक्स क्या है?
हाइड्रोपोनिक्स क्या है ? What is Hydroponics


मृदा या मिटटी के बिना बागवानी करने के विज्ञान है। जिसे हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है। केवल पानी में या कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं। इसे हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली भी कहा जाता है। 

What is Hydroponic Kheti




इस प्रणाली में पारंपरिक बागवानी की तुलना में कहीं अधिक, जल्दी व आसानी से उच्च गुणवत्ता युक्त सब्जियां उगाई जा सकती हैं।

हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हाइड्रो’ (Hydro) तथा ‘पोनोस (Ponos) से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है। पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।

हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक आधुनिक तकनीक है। जिसका अभिप्राय पानी द्वारा खेती से है।
कम जगह होते हुए भी एक स्थायी तरीके से हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम से बड़ी मात्रा में, स्वास्थ्यप्रद भोजन को विकसित किया जा सकता है।

बड़े बड़े शहरों में यह तकनीक बहुत ज्यादा अपनाई जा रही है।  दरअसल, बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती आबादी के कारण फसल और पौधों के लिये जमीन की कमी भी होती जा रही है।

 हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में आप अपने फ्लैट में या घर में भी बड़े आराम से पौधे और सब्जियाँ आदि उगा सकते हैं।
यह तकनीक लोगों को उन स्थानों पर भी भोजन उगाने की क्षमता प्रदान करता है, जहां पारंपरिक कृषि संभव नहीं है।


आमतौर पर हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में टमाटर, मिर्च, खीरे, लेट्यूस, पालक, बैंगन, शिमला मिर्च, करेला आदि हर प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है।

हाइड्रोपोनिक प्रणालियों में पौधों को विभिन्न प्रकार से पोषक तत्व प्रदान किये जाते है जिसमे  कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक या कृत्रिम विधि द्वारा तैयार किये गए पोषक तत्व आदि प्रमुख है। 

हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली कई फायदे भी प्रदान करती है, उनमें से एक है कृषि के लिए पानी के उपयोग में कमी, अर्थार्थ जहाँ साधारण खेती में 1 किलोग्राम टमाटर उगाने के लिए 70 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, हाइड्रोपोनिक्स में  केवल 20 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का कई पश्चिमी देशों में फसल उत्पादन के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में भी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से देश के कई क्षेत्रों में बिना जमीन और मिट्टी के पौधे उगाए जा रहे हैं और फसलें पैदा की जा रही हैं। राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में जहाँ चारे के उत्पादन के लिये विपरीत जलवायु वाली परिस्थितियाँ हैं, उन क्षेत्रों में यह तकनीक वरदान सिद्ध हो सकती है।

दूरसे शब्दों में कहें तो यह एक आधुनिक तकनीक की खेती जिसमें पौधों की वृद्धि, उत्पादकता पोषक तत्वों, का स्तर पानी द्वारा वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित की जाती है।

खेती करने का यह तरीका बड़े बड़े शहरों और महानगरों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है और आधुनिक कृषि पद्धतियों पर भी इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है,
हाइड्रोपोनिक्स,
पौधों की उत्तम वृद्धि और बेहतर उपज व उत्पादन पाने के लिए पानी के साथ साथ विशिष्ट मात्रा के दिए गए पोषक तत्त्वों द्वारा समृद्ध किया जाता है

हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली के कुछ बुनियादी मुख्य प्रबंधन कार्य की निम्नलिखित है

Plant & Root Support System:- आम तौर पर हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में, पौधे और पौधे की जड़ों को सीधा ऊपर की और बढ़ने के लिए सहारा देने व्यवस्था की जाती है, जिसके  लिए कई माध्यमों और प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है।

Supply of Nutrient:- एक और जहाँ पारंपरिक खेती में पौधे पानी और पोषक तत्त्वों को मिटटी से ग्रहण करते है वहीं हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाया जाता है।

supply Of Air:- मृदा आधारित खेती में, पौधों को मिट्टी से ऑक्सीजन प्राप्त होता है, परन्तु हाइड्रोपोनिक्स कृषि प्रणाली में पौधे पानी से ऑक्सीजन प्राप्त करते है  यह ठीक वैसे ही है जैसे एक्वेरियम टैंक में मछलियों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है

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👉 इसमें आप सीखेंगे यह प्रणाली किस प्रकार कार्य करती है।
👉 हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम का निर्माण कैसे किया जाता है।
👉 पौधों के पोषक तत्व तैयार करना ।
👉 उचित देखभाल व प्रबंधन।
👉 व्यावसायिक हाइड्रोपोनिक्स फार्म का निर्माण कैसे किया जाता है।
👉 सब्सिड़ी व लोन कहाँ से प्राप्त करे।
👉 प्रोजेक्ट रिपोर्ट कैसे तैयार करें।
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सम्पूर्ण जानकारी ई-बुक के माध्यम से प्राप्त करें, न्यूट्रिएंट फार्मूले के साथ, कैसे पौधों के पोषक तत्व तैयार किया जाता है। आदि कई महत्वपूर्ण जाकारियों से भरपूर, हाइड्रोपोनिक्स ई-बुक मात्र 199/- रुपए में आप इस बुक को डाउनलोड कर सकते है।
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हाइड्रोपोनिक्स क्या है,


हाइड्रोपोनिक्स खेती कैसे करे,

https://bit.ly/3dBTHx4



Growing Net Cup For Hydroponic System

ग्रोइंग कप क्या है और इसके क्या कार्य है।

ग्रोइंग कप एनएफटी हाइड्रोपोनिक सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं विशेष रूप से छोटे पौधों के लिए फायदेमंद है। जिसे आमतौर पर नेट कप कहा जाता है।

इस कप को पौधों की जड़ो को मजबूती से टिकाये रखने के लिए  कई प्रकार के ग्रोइंग मीडिया (जैसे पर्लाइट, नारियाल का बुरादा, बर्मीकुलाइट, क्ले बॉल्स, आदि) के साथ इसे एनएफटी हाइड्रोपोनिक सिस्टम में स्थापित किया जाता है। नेट कप द्वारा ही पौधे की जड़ो को आधार प्रदान किया जाता है,  साधारणतः यह प्लास्टिक से बने होते है और बार बार प्रयोग में लाये जा सकते है ।

नेट कप द्वारा जड़ों या तनों को कोई नुकसान पहुचाये बिना पौधों को स्थानांतरित करना आसान हो जाता है।

इसमें चारो और के छिद्रों से, पौधे आसानी से नमी और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं। पौधे की जड़ो का विकास इसी कप में होता है।

पौधे के आकर के हिसाब से कप का चुनाव करना चाहिए आमतौर पर लेक्टस के लिए 2 इंच नेट कप का उपयोग किया जाता है, लेकिन टमाटर मिर्च और बेलदार पौधों के लिए अलग-अलग आकार के नेट कप का उपयोग किया जाता है।


शहरी खेती Urban Farming and Hydroponic Farming Technique

स्पष्ट रूप से शहरी कृषि, शहरी खेती, या शहरी बागवानी , वह कार्य या व्यवसाय है, जिसे अब सिर्फ गाँव ही नहीं बड़े बड़े आधुनिक शहरों में भी किया जा सकता है।

खेती के लिए पर्याप्त भूमि न होने के बावजूद इस कार्य या व्यवसाय को छोटे शहरों या गाँव में भी आसानी से किया जा सकता है जो आसानी से भोजन की दैनिक मांग को पूरा कर सकते है।

पारम्परिक खेती में बढ़ते कीटनाशकों का प्रयोग और प्रकृति से प्रेम का शहरों में रहने वाले लोगो को इस और आकर्षित कर रहा है। जो उच्च गुणवत्ता के फल सब्जियों आदि की कमी को पूरा करने के लिए एक बहुत ही अच्छा विकल्प बनता जा रहा है आने वाले समय में शहरी खेती, या शहरी बागवानी खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण स्रोत बनने वाले है।
शहरी खेती शहर में अपने निजी अहाते, छोटे भूखंडों से लेकर बड़े पैमाने में व्यवसायिक रूप में किया जा सकता है एक अध्यन के मुताबिक दुनिया भर में लाखो लोग शहरी खेती, में नई नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर के नए आयाम प्रस्तुत कर रहे है।

आमतौर पर जल, और वायु  द्वारा आधारित आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक शहरी खेती भूमि सुरक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है ।

इसे अधिकांश शहरों में छोटी-छोटी खाली जगहों या छतों में अंदर या बाहर,  हाइड्रोपोनिक्स तकनीक द्वारा बड़ी ही सुगमता से गुणवत्ता पूर्ण भोजन का उत्पादन करने के लिए बहुत आसानी से किया जा रहा है। भोजन और ऊर्जा दोनों की बर्बादी भी कम की जा सकती है। आमतौर पर जहाँ परंपरागत कृषि में पौधों के सफल विकास के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में उन्हें विकसित करने के लिए मिटटी की आवश्यकता नहीं होती है। हाइड्रोपोनिक्स में पौधे  25-30% तेजी से  विकास अधिक मात्रा में फ़सल उत्पादन करते है।

शहरी कृषि के इस आधुनिक मॉडल को व्यावसायिक रूप में अपना कर आपने आप को आर्थिक रूप से सदृढ़ भी किया जा सकता है।

भविष्य के लिए, हाइड्रोपोनिक्स  सिस्टम से जुड़ना एक स्मार्ट निवेश है। हाइड्रोपोनिक्स और संबंधित नौकरियां या व्यवसाय देश में सबसे तेजी से बढ़ रहे है, और भविष्य में शहरी कृषि सार्वजनिक और निजी दोनों छेत्रों ,के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।

शहरी खेती विशेष रूप से शहरों में रहने वाले लोगों के लिए खाद्य उत्पादन और प्रकृति के साथ जुड़े रहने का अद्भुद और अद्वितीय अवसर प्रदान करने के साथ साथ नए उद्यमशीलता की गतिविधियों में वृद्धि और नौकरियों के सृजन के साथ-साथ खाद्य लागतों को कम करने और उनकी  गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करती है।

शहरी कृषि व्यक्तियों के सामाजिक और भावनात्मक कल्याण पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकती है। शहरी उद्यान अक्सर ऐसे स्थान होते हैं जो सकारात्मक सामाजिक संपर्क और आपसी सामाजिक सुरक्षा पैदा में करने   महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वैज्ञानिक तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक्स में उत्पन किये गए फल, सब्जियां आदि उत्पाद, स्टोर किये गए खाद्यों  की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी माने जाते है।


शहरी कृषि कम आय वाले लोगो के लिए भी हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम द्वारा बागवानी करना आर्थिक दृस्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है


दोस्तों हम आपके लिए लेकर आये हैं बिलकुल ही सरल और आसान एक्सपर्ट लेबल का हाइड्रोपोनिक्स कोर्स हिंदी में । जिसके बाद आप अपना खुद का एक हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम तैयार कर सकते है ,

इस कोर्स में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समझने में सहायता मिलेगी, की यह तकनीक क्या है और कैसे कार्य करती है । और कैसे आप आसानी से इस विधि का प्रयोग आपने घर में लाभ ले सकते है।

इसमें हम आपको बताएँगे के कैसे पौधों के लिए विशिष्ट पोषक घोल (खाद) तैयार किया जाता है, किन किन खादों और पोषक तत्वों की पौधों को कब जरूरत होती है , और पोधों की जरूरत के मुताबिक़ सही मात्रा में आप खुद आपने हाथो से इसे तैयार कर सकेंगे , दोस्तों इसके लिए लिए आपको सिर्फ सहयोग राशि के रूप में मात्र रु 199/- देने होंगे । तो आज ही डाउनलोड करें ऑनलाइन फुल कोर्स।

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हाइड्रोपोनिक्स क्या है WHAT IS HYDROPONICS # हाइड्रोपोनिक्स तकनीक # हाइड्रोपोनिक व्यवसाय कैसे शुरू करें # घर की छत पर हाइड्रोपोनिक बागवानी

हाइड्रोपोनिक्स पौधों को उगाने (खेती या बागवानी) की ऐसी विधि है। जिसमे मिटटी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।   

हाइड्रोपोनिक्स क्या है WHAT IS HYDROPONICS

मिटटी की जगह इसमें पर्लाइट, रॉकवूल, क्ले बॉल्स, कोकोपीट, वर्मीकुलाइट आदि का प्रयोग किया जाता है ,
इस तकनीक में पौधों को आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाए जाते है जो पौधों के विकास के लिए बहुत आवश्यक होते है। आधुनिक खेती के रूप में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का प्रचलन काफी बढ़ा है।

हाइड्रोपोनिक्स क्या है


इस आधुनिक तकनीक में पौधों का विकास कम समय में अधिक , तथा फसल स्वस्थ व स्वच्छ होती है।

हाइड्रोपोनिक्स विधि के बहुत से लाभ देखे गए है, जैसे
सबसे पहले तो इसमें मिटटी का इस्तेमाल नहीं किया जाता
दूसरा हर जगह तथा किसी भी मौसम में इस तकनीक का इस्तेमाल करके फसलों को उगाया जा सकता है
कम जगह में भी इस तकनीक का बखूबी इस्तेमाल करके ज्यादा लाभ लिया जा सकता है।  बल्कि घर की छत्तों में भी इस तकनीक का उपयोग करके बेहतरीन आमदनी का जरिया बनाया जा सकता है ।
इसमें पोधो को पोषक तत्त्व आसानी से प्राप्त होते है जिससे कम जगह में ज्यादा पौधों को लगाया जा सकता है।  

हाइड्रोपोनिक्स पानी की फ़ालतू बर्बादी को रोकता है।  खुले खेतों की अपेक्षा इसमें 90 प्रतिशत कम पानी की खपत होती है ,  इस विधि में सिस्टम के अंदर पानी लगातार घूमता रहता है जिसे पौधे अपनी आवश्यकता के अनुसार लेते रहते है।  

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक

सबसे बड़ा फायदा इसमें यह है की आप पौधों के विकास अलग-अलग चरणों के अनुसार आवश्यक पोषक तत्त्वों की सही मात्रा पौधों को आसानी से उपलब्ध करवा सकते है। जिससे अधिक व गुणवत्ता युक्त उपज या फसल ले सकते है।  
पारंपरिक खेती में मुख्य चिंता का विषय होती है खरपतवार।  लेकिन हाइड्रोपोनिक्स  में आपको इस चिंता से मुक्ति मिल जाती है।  
हाइड्रोपोनिक्स श्रम और समय तो बचाता ही है।  साथ ही साथ इस विधि से किसी भी समय किसी भी मौसम में  अधिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।

अगर आप हाइड्रोपोनिक्स सीखना चाहते है और इसमें मास्टर बनना चाहते है तो इस तकनीक को सीखने के लिए सम्पूर्ण  ई बुक आज ही डाउनलोड करें ,  मात्र 199 रुपए में। 

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