Plant Nutrients For Hydroponics पौधों के लिए पोषक तत्वों का घोल कैसे बनाएं,

Hydroponics Nutrients

दोस्तों अगर आप भी हाइड्रोपोनिक्स विधि से सब्जियों फूलों, तथा अन्य फसलों की व्यवसिक खेती अथवा, घरेलू स्तर पर हाइड्रोपोनिक्स की शुरुवात करना चाहते है तो आप इसे बहुत आसानी से शुरू कर सकते है,

हाइड्रोपोनिक्स विधि से उत्पादन शुरू करने से पहले आपको बहुत सी बातों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है, तभी आप इस विधि को आसानी से संचालित कर अच्छा मुनाफा व इस क्षेत्र में अच्छा नाम कमा सकते है।

इसमें सबसे पहले तो आपको पौधों के बारे में पता होना चाहिए कि किस स्टेज में कोन से पोषक तत्वों की पौधों को आवश्यकता होती है, तथा यह पौधों को किस मात्र में तथा कैसे उपलब्ध करवाना चाहिए।

दूसरा उपयुक्त तापमान, या वातावरण जिससे उच्च स्तर का गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त किया जा सके।

तीसरा सेटअप की लागत आदि।

इसके इलावा भी कई सारी ओर भी बातें है जिन्हे ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी है।

हाइड्रोपोनिक्स क्या है, यह तकनीक किस तरह कार्य करती है ?

आज हम बात करते है पौधों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों की, जिस प्रकार सभी प्राणीओं को जीवित रहने के लिए भोजन या ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उसी प्रकार पौधों को भी उचित विकास व फैलने फूलने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । जो पौधों को विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों द्वारा प्राप्त होते है । इन पोषक तत्वों को पौधे सूर्य के प्रकाश पानी व मिटटी से प्राप्त करते है ।

पौधों के पोषक तत्व  उन तत्वों को कहते हैं। जिससे पौधे जिससे पौधे आपन जीवनचक्र पूरा करते है । तथा सम्पूर्ण विकास कर पाते है ।

विस्तृत जानकारी के लिए यह लेख देखें :- Plant Nutrient Elements And Their Fertilizers पौधों के प्रमुख पोषक तत्व तथा उनके उर्वरक

इन तत्वों  की कमी को केवल इन्हीं तत्वों के प्रयोग से ही पूरा किया जा सकता है। आपको यह जानना बहुत ही जरूरी है कि हाइड्रोपोनिक्स में पोषक तत्वों का घोल किस प्रकार बनाया जाता है व कितनी मात्रा में किस समय में ओर कैसे यह घोल पोधो को उपलब्ध करवाना है, ताकि हम बेहतरीन गुणवत्ता युक्त फसल ले सकें।

Click Here To Download Complete E-Book Of Hydroponics In Hindi

Hydroponics E-Book In Hindi



हाइड्रोपोनिक्स विषय की सम्पूर्ण जानकारी Hydroponics Farming Techniques In India

हाइड्रोपोनिक्स विषय की सम्पूर्ण जानकारी Hydroponics Farming Techniques In India
दोस्तों आपने हाइड्रोपोनिक्स विषय के बारे में बहुत सी विडियो व कई आर्टिकल इंटरनेट पर जरूर पढ़े या देखे होंगे, जिसमे हाइड्रोपोनिक के बारे में बहुत सी बाते बताई गई होंगी, जैसा कि हाइड्रोपोनिक्स विधि में बिना मिट्टी के खेती की करने की एक विशेष तकनीक है, लेकिन इस तकनीक को कैसे प्रयोग में लाएं कोई सीधा सीधा नहीं बताता, कई लोग ओर कंपनियां तो इस तकनीक को सिखाने के लिए हजारों रुपए फीस के रूप में चार्ज कर रहे है। जो कि हर किसी के लिए संभव नहीं है, हाइड्रोपोनिक विधि से खेती या सब्जियों की बागवानी कोई नई चीज नहीं है,, इस विधि का प्रयोग कई सालों पहले से होता आ रहा है, लेकिन सीमित जानकारी व पूर्ण ज्ञान  के अभाव के कारण यह जानकारी आम लोगों तक कम ही पहुंच पाई थी,, लेकिन आज बढ़ते इंटरनेट व सूचना विज्ञान के माध्यम हर जानकारी तक आम आदमी भी आसानी से पहुंच सकता है। व अपने उपयोग अनुसार इन जानकारियों से फायदा ले सकता है ।

लेख पढ़ें :- हाइड्रोपोनिक्स क्या है।

दोस्तों हाइड्रोपोनिक्स जल कृषि के नाम से भी पूरी दुनिया में विख्यात है, और बिना मिटटी के खेती यानी फसलों की पैदावार करने की एक बेहतरीन विधि है।  जिसमे बिभिन्न प्रकार की सब्जियों और अन्य फसलों की खेती आधुनिक तरीके से की जाती है।  जो को उच्च गुणवत्त युक्त व रोगाणु मुक्त होती है।   जैसा कि आप जानते है पोधौ के विकास या कहें फसल उत्पादन के लिए खेतों में कई प्रकार की ऑर्गेनिक या रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है, जिससे फसल की अच्छी उपज प्राप्त की जा सके। 

उसी प्रकार हाइड्रोपोनिक्स में भी पौधों या फसल की बेहतर उपज के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि इसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए पोषक तत्त्व जल के साथ पौधों को उपलब्ध करवाई जाती है ।

लेकिन इस विधि में बहुत सी अन्य बातों को ध्यान रखना भी रखना पड़ता है, जैसे कि पोधों के विकास के लिए उचित वातावरण, तापमान, नमी व उचित पोषक तत्त्वों की उचित समय अनुसार व्यवस्था, इन सभी बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है। जो कि बहुत आसान भी है, इन सभी बातों का ध्यान रखे बिना इस तकनीक में सफलता नहीं पाई जा सकती है।

पौधों के मुख्य पोषक तत्त्वों के लिए यह आर्टिकल पढ़ें,

Plant Nutrient Elements And Their Fertilizers पौधों के प्रमुख पोषक तत्व तथा उनके उर्वरक

लेकिन यदि आप उपयुक्त सभी बातों का ध्यान रख कर हाइड्रोपोनिक्स विधि का प्रयोग करते है, तो आप पारंपरिक खेती की तुलना में 3 गुना अधिक उपज ले सकते है, ओर कम जगह में भी अधिक मुनाफा कमा सकते है। 

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का एक फायदा यह भी है कि जमीन व खेत आदि के बिना भी इस तकनीक से खेती की जा रही है, जिसे आज के आधुनिक युग में इनडोर फार्मिंग के नाम से भी जाना जा रहा है। जिसमे किसी भी मौसम में बाजार की मांग के अनुसार कोई भी उपज ले सकते है,  ओर इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक (Pesticides) कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है, जो कि आज के समय में हजारों बीमारियों का कारण बन चुके है।

इनडोर फार्मिंग के तहत हाइड्रोपोनिक्स वेजिटेबल फार्म घर की छतों पर भी आसानी से विकसित किया जा रहा है। ओर इसका प्रयोग बेहतर मुनाफे व सुरक्षित भोजन में लिए लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 

यह लेख भी पढ़ें :- बिभिन्न प्रकार के हाइड्रोपोनिक सिस्टम

अधिक गुणवत्ता युक्त और हर  प्रकार की Disease Free रोग मुक्त सब्जियों व फसलों की मांग बढ़ने के करने हाइड्रोपोनिक्स वैश्विक स्तर पर बहुत ही तेजी से अपनाया जा रहा है, ओर विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जा रहा है।

दोस्तों अगर आप भी हाइड्रोपोनिक्स की संपूर्ण विधि सीखना चाहते है तो आज ही डाउनलोड करें हमारी संपूर्ण हाइड्रोपोनिक्स ई बुक हिंदी में, व आसानी से सीखें ओर स्वयं का उद्यम शुरू करें, 

दोस्तों इस ई बुक में बहुत ही सरल व आसान तरीके से हाइड्रोपोनिक्स के सभी विषयों के बारे में विस्तापूर्वक बताया गया है। जिससे आपको इस तकनीक को सीखने में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा व आप बहुत ही कम खर्चे में इस तकनीक को आसानी से प्रयोग में ला सकेंगे। तथा आसानी से अपना हाइड्रोपोनिक फार्म विकसित कर सकेंगे।

Click Here To Download Complete E-Book Of Hydroponics In Hindi

Hydroponics E-Book In Hindi



Hydroponic Guide For Building a Hydroponics System

 

Want  to start your own hydroponics system, its very easy and simple, Download Complete Hydroponics Guide in English and learn how to start a hydroponics system easily.


Click Here To Download Complete E Book In English Only In 299/-

DISCOVER THE TIPS YOU NEED TO START YOUR OWN HYDROPONICS GARDEN!!!

Here Is A Preview Of What You'll Learn...

    BENEFITS OF HYDROPONICS
    CHOOSING YOUR HYDROPONICS SYSTEM
    PLANT NUTRITION
    FINDING THE RIGHT LIGHTING
    GROWING YOUR PLANTS
    MAKING ROOM FOR THE HYDROPONICS SYSTEM
    TIPS TO PREVENT ISSUES
    MUCH, MUCH, MORE!

My E-book gives you the ability to take any formulation and easily translate it into the real amounts of chemicals you need to weight in order to prepare your final hydroponic nutrient reservoirs. All the chemicals I have included with in the E-book are extremely easy to find – as they are very common fertilizers- allowing you to prepare ANY formulation you may want.
You can now fulfill your dreams of preparing one solution for each separate growth stage controlling the exact amount of each single nutrient you add into the solution. What you will find here is a very easy to use solution – made by a professional in chemistry – that will help you prepare fertilizers in the most cost effective yet flexible and satisfying way there is. You will now know exactly was is inside your hydroponic formulations and you will be able top in-point and solve any nutrient related problems that may arise within your crop. You will also be able to easily discard problems as not being nutrient related since you KNOW the exact quantities of each nutrient you are putting into the solution.So are you ready to embark yours.










.

आसानी से घर पर उगाएं ओएस्टर मशरुम Grow Mushrooms Easily at Home

 

आसानी से घर पर उगाएं ओएस्टर मशरुम Grow Mushrooms Easily at Home
ओएस्टर मशरुम को आसानी से सफलतापूर्वक अनेक प्रकार  के कृषि अवशिष्टों या माध्यमों से घरों के बंद कमरों में उगाया जा सकता है। गेहूं का भूसा इसके लिए अति उत्तम माना जाता है । इसके लिये कम जगह की आवश्यकता होती है, इसकी उत्पादन तकनीक सरल व लागत बहुत कम है जिसके माध्यम से समाज का हर वर्ग इसे छोटे से बड़े रूप में उगा सकता है।

सामान्यतः  गेहूँ का भूसा, सोयाबीन का भूसा धान्य फसलों के उपरोक्त कृषि अवशेष आयस्टर मशरूम की खेती के लिये सर्वोत्तम होते है इस मशरूम की उत्पादन क्षमता अन्य मशरुम की तुलना में बहुत अधिक होती है ।

उपयुक्त माध्यम (जिसमे आप इसे उगना चाहते है) का चुनाव करने के पश्चात इसे किसी जीवाणु रहित करना बहुत जी जरूरी होता है ताकि अन्य सूक्ष्म जीव जंतु निष्क्रिय हो जाए और मशरूम की फफूंद पूरे माध्यम या मिक्सचर में पूरी तरह फ़ैल सके। अन्य शुक्ष्म जीविओं की उपस्थति से मशरूम उत्पादन में परेशानी हो सकती है ।

100 लीटर पानी में 125 मिलीलीटर फ़ार्मेलिन तथा 7.5 ग्राम बाविस्टीन मिला कर घोल बनाये, उसके बाद 10 से 15 किलो सूखे माध्यम (भूसे) को अच्छी तरह से घोल में डूबा दें  4 से 6 घण्टे के लिये पालीथिन से ढँक दे। जिस से हानिकारक शुक्ष्म जीव व विषाणु नष्ट हो जाएँ ।
Grow Mushroom On Agricalture waste
अब इस गीले हुए माध्य मसे घोल निथार दे तथा उसे पक्के ढालू फर्श पर बिछा  दें ताकि भूसा आसानी से निथार जाए ध्यान रहे इसे ज्यादा भी नहीं सुखना है। इसमें नमी की मात्रा होनी चाहिए और ना ही ज्यादा गीला रखना चाहिए इसे आप हाथ से दबा कर निरिक्षण कर सकते है ।

अब इस गीले हुए माध्यम में मशरूम बीज 30 ग्राम बीज प्रति किलो भूसे  की दर से मिलाये।

मशरूम स्पान या बीज मिलाने के बाद इस मिश्रण को माध्यम आकार (18"X12") की पालीथिन की थैलियों में अच्छे से दबा कर भरें, और थैली का मुँह किसी रस्सी या डोरी की सहायता से अच्छी तरह बांड लें थैलियां बाँधने के बाद सभी थालियों या बैगों के चारो तरफ और नीचे पांच से छः इंच की दूरी पर किसी पेन या लकड़ी की सहायता से छोटे छोटे छेद बना लें ताकि फ़ालतू पानी बहार निकल सके और हवा या मॉस्चर बराबर बना रहे
अब इन थैलों को किसी झोपड़ी या कमरे में लटका कर या लकड़ी के रैक बना कर रख दें ।
मशरुम उत्पादन
कमरे का तापमान 20-28 डिग्री से ग्रे व मॉस्चर यानी नमी 80-85 प्रतिशत होना चाहिए। इसके लिए मॉस्चर व तापमान मीटर का उपयोग करके समय समय पर जांच करते रहना चाहिए । नमी व उचित तापमान को बनाये रखने के लिए दिन में दो तीन बार सूक्ष्म फवारे की सहायता से पानी का छिड़काव करना चाहिए ।

मशरुम उत्पादन कक्ष का दरवाजा बंद कर दें , ओएस्टर मशरूम की वृद्धि के लिये ज्यादा प्रकाश की जरूरत नहीं होती है । कार्बनडाई-आक्साइड की मात्रा झोपड़ी (कमरे) में मशरूम फफूंद के कवक जाल फैलते समय अधिक व खाने योग्य मशरूम निकलते समय कम होनी चाहिये।

अनुकूल स्थिति में थैलों को काटने के 5-6 दिन बाद से ही मशरूम का सिर(पिनहैड) दिखाई पड़ने लगता है जो 3-4। दिन बाद आकार में बढ़कर 5-10 सेमी। का हो जाता है। जब मशरूम उपयुक्त आकार के हो जाये, तब इनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए । पूर्ण विकसित होने के बाद यह किनारों से ऊपर की ओर मुड़ने लगते है। तुड़ाई करते समय यह सावधानी बरतें की छोटे बढ़ रहे मशरूम को हानी न पहुँचे। इस प्रकार एक थैले से 3-4 बार तुड़ाई की जा सकती है। यह फसल दो महीने तक चलती है । 

How to Grow Oyster Mushroom घर में मशरुम कैसे उगाएं

दोस्तों  अक्सर  वर्षा ऋतु में छतरी नुमा आकार के विभिन्न प्रकार एवं रंगों के पौधों जैसी संरचनाएं या आकृतियां खेतों या जंगलों तथा घरों के आसपास दिखाई देते है जिन्हे हम मशरुम या खुम्भ कहते है।  ये मशरूम एक प्रकार के फफूंद होते है जिनका उपयोग आदिकाल से हमारे पूर्वज भोजन तथा रोगों की रोकथाम के लिए प्रयोग करते रहे है प्रकृति में लगभग 14-15 हजार प्रकार के मशरुम पाए जाते है।  लेकिन सभी मशरुम खाने योग्य नहीं होते है। इनमे से कई प्रजातियां जहरीली भी होती है, अतः बिना जानकारी के जंगली मशरूमों को नहीं खाना चाहिए।  इन्ही में से एक ढींगरी प्रजाति की मशरुम जो पुरानी लकड़ी, सूखे पेड़ तथा पेड़ की बाहरी खाल पर बारिश के बाद देखे जा सकते।  ढींगरी प्रजाति की मशरुम एक शाकाहारी पौस्टिक खाने योग्य मशरुम होती है। 

How to Grow Oyester Mushroom घर में मशरुम कैसे उगाएंदुनियाभर में ढींगरी मशरुम की लगभग 800000 टन प्रतिवर्ष उपज होती है।  तथा यह बटन तथा शिटाके के बाद तीसरे नंबर की सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली किस्म है।  इस मशरुम में प्रोटीन की मात्रा सबसे अधिक होती है तथा इसमें कई प्रकार के औषधीय तत्त्व भी पाए जाते है। 

हमारे देश में मुख्यतः चार प्रकार की मशरुम की खेती की जाती है।  जैसे की बटन मशरुम , ढींगरी मशरुम , मिल्की मशरुम , तथा धान पुआल मशरुम आदि।

हमारे देश में भिन्न भिन्न प्रकार की जलवायु तथा ऋतुओं के अनुसार वातावरण में तापमान तथा नमी रहती है, इसको ध्यान में रख कर हम विभिन्न प्रकार की मशरूमों की खेती भिन्न भिन्न मौसम के अनुसार कर सकते है।  वैसे हमारे देश की जलवायु ढींगरी मशरुम के लिए बहुत ही अनुकूल है , तथा पूरे साल हम ढींगरी मशरुम की खेती कर सकते है। 

आने वाले समय में इसका उत्पादन निरंतर बढ़ने की संभावना है , जैसा की आप जानते है भारत के कृषि प्रधान देश है अतः यहां कृषि फसलों का उत्पादन बहुतायत में होता है।  इन कृषि फसलों के व्यर्थ अवशेषों जैसे भूसा , पुआल , तथा पत्ते जो की गेहूं चावल ज्वर बाजरा मक्का गन्ना तथा कई प्रकार की अन्य फसलों से प्राप्त किये जाते है।  इनमे से कुछ का प्रयोग पशुओं के खाने के काम आता है।  लेकिन कई फसलों के अवशेषों का कोई उपयोग नहीं होता है तथा  किसान भाई इन्हे खेत में ही जला देते है।  जिसका कुप्रभाव हमारे जीवन तथा वातावरण पर आसानी से देखा जा सकता है।  मशरुम की खेती एक ऐसा साधन है जिससे इन कृषि अवशेषों को प्रयोग कर किसान भाई अपने परिवार को पौस्टिक भोजन देने के साथ साथ अपनी आमदनी को भी बढ़ा सकते है।  आज मशरुम की खेती पुरे भारत में हो रही है।  ढींगरी मशरुम की विशेषता यह है की इसे किसी भी प्रकार की कृषि अवशिष्टों पर बहुत ही आसानी से उगाया जा सकता है इसका फसल चक्र भी बहुत कम होता है। 45 से 60 दिन में इसकी फसल ली जा सकती है , ढींगरी मिषरूम को पूरे साल सर्दी हो या गर्मी आसानी से सही प्रजाति का चुनाव कर उगाया जा सकता है।

ढींगरी उत्पादन करने की आसान विधि :- ढींगरी उत्पादन के लिए हमें एक साधारण उत्पादन कक्ष (कमरे) की जरूरत होती है।  जिसे बांस , या कच्ची ईटों , पॉलीथीन तथा पुआल से बनाया जा सकते है।  ये किसी भी साइज के बनाये जा सकते है जैसे 18x15x10, फुट  के कमरे या कच्ची झोपडी  में 300, से 400, बैग रखे जा सकते है , इस बात का ध्यान रखना चाहिए की हवा के  लिए उचित प्रबंध हो , उत्पादन कक्ष (कमरे) में नमी 85-90प्रतिशत  बनाय रखने के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 

जैसा की ढींगरी मशरुम उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार के कृषि अवशेषों का प्रयोग किया जा सकता है , इसके लिए जरूरी है के भूसा या पुआल ज्यादा पुराना तथा सड़ा हुआ नहीं होना चाहिए।  जिन पौधों के अवशेषों सख्त तथा लम्बे हो  उन्हें 2 से 3 से मि साइज में काट कर इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

कृषि अवशेषों में कई प्रकार के हानिकारक सूक्षजीव, फफूंद तथा बक्टेरिया  आदि कई प्रकार के जीवाणु हो सकते है।  अतः सबसे पहले कृषि अवशेषों को जीवाणुरहित किया जाता है जिसके लिए आसान उपचार विधि का प्रयोग किया जा सकता है। 

1.     गरम पानी द्वारा उपचार :- इस विधि में कृषि अवशेषों को छिद्रदार जूट के थैले या बोरे में भर कर रात भर के लिए गीला किया जाता है तथा अगले दिन इसे गरम पानी (60-70, डिग्री) द्वारा उपचारित किया जाता है।   तथा ठंडा करने के बाद मशरुम का बीज मिलाया जाता है। घरेलु स्तर पर उत्पादन के लिए यह विधि उपयोग में लाइ जा सकती है। 

     2.   रासायनिक विधि द्वारा :- यह विधि घरेलु तथा व्यावसयिक स्तर पर उत्पादन के लिए बहुत अधिक उपयोग की जाती है। इस विधि में कृषि अवशेषों को विशेष प्रकार के रसायन द्वारा जीवाणु रहित किया जा सकता है।  इस विधि में एक 200, लीटर के ड्रम या टब में 90, लीटर पानी में लगभग 12-14, किलो सूखे भूसे को गीला किया जाता है तथा एक दूसरी बाल्टी में 10, लीटर पानी में 5,ग्राम बाविस्टीन तथा फॉर्मलीन 125, मि ली  का घोल बना कर भूसे वाले ड्रम के ऊपर उड़ेल दिया जाता है।  तथा ड्रम को पॉलीथीन शीट या ढक्कन से अच्छी तरह बंद कर दिया जाता है।  लगभग 12-14, घंटे बाद इस उपचारित हुये भूसे को बहार निकाल कर किसी प्लास्टिक शीट पर 2-4, घंटों के लिए फैला कर छोड़ दिया जाता है , जिससे भूसे में मौजूद अतरिक्त  पानी बाहर निकल जाता है।

 3.  पास्तुराइज़ेशन विधि :- यह विधि उन मशरुम उत्पादकों के लिए उपयुक्त है जो बटन मशरुम की खाद पास्तुराइज़ेशन टनल में बनाते है इस विधि में भूसे को गीला कर लगभग चार फुट चौड़ी आयताकार ढ़ेरी बना दी जाती है।  ढ़ेरी को दो दिन बाद तोड़ कर फिर से नई ढ़ेरी बना दी जाती है।  जिस प्रकार चार दिन बाद भूसे का तापमान 55 से 65 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।  इसके बाद भूसे को पास्तुराइज़ेशन टनल में भर दिया जाता है।  टनल का तापमान ब्लोअर द्वार एक सामान करने के पश्चात बॉयलर से 4-5, घंटे टनल में भाप छोड़ा जाता है।  उसके पश्चात भूसे को ठंडा किया जाता है और बिजाई कर दी जाती है। 

Oyester Mushroom Cultivation Process
विजाई करने की विधि :- ढींगरी मशरुम के बाज हमेशा ताजा प्रयोग करने चाहिए जो 30 दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए एक क्वेंटल सूखे भूसे के लिए दस किलो बीज की आवश्यकता होती है।  गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस सजोर काजू , प्लूरोटस फ्लाबेलेट्स, प्लूरोटस सेपीडस , प्लूरोटस जामोर आदि किस्मों को उगाना चाहिए, सर्दियों में जब वातावरण 20 डिग्री से निचे हो तो प्लूरोटस फ्लोरिडा , प्लूरोटस कार्नुकोपीया , आदि का चुनाव करना चाहिए।  बिजाई से दो दिन पहले कमरे को दो प्रतिशत फॉर्मलीन से उपचारित करना चाहिए।  प्रति 400 ग्राम गीले भूसे में 100 ग्राम की दर से बीज मिलाना चाहिए।

बीज मिश्रित भूसे को पॉलिथीन में भर कर बंद कर देना चाहिए , तथा इसके चारों तरफ छोटे छोटे छेद कर देने चाहिए जिससे सही नमी व तापमान बना रहे। 

बिजाई के बाद सभी थैलों को उत्पादन कक्ष में रख दिया जाता है , व कमरे के तापमान व नमी का प्रत्येक दिन निरिक्षण किया जाता है।  बिजित बैगों पर भी ध्यान दिया जाता है के बीज फ़ैल रहा है या नहीं , बीज फैलते समय हवा पानी अथवा प्रकाश की आवकश्यता नहीं होती है।  अगर कमरे का तापमान 30 डिग्री से अधिक बढ़ने लगे तो कमरे में फुवारे की सहायता से पानी का छिड़काव करना चाहिए जिससे तापमान नियंत्रित किया जा सके, ध्यान रखें बैगों में पानी जमा नहीं होना चाहिए , लगभग 15 से 20 दिनों में मशरुम का कवक जाल पुरे भूसे में फ़ैल जाएगा,  दिन में दो तीन बार पानी का छिड़काव करें , बीज फैलने के बाद कमरे में 6-8 घंटे प्रकाश देना चाहिए , खिड़कियों या लाइट का प्रबंध पहले ही किया जाना चाहिए , उत्पादन कक्ष में प्रतिदिन दो तीन बार खिड़कियां खुली रखनी चाहिए तथा एक्सॉस्ट फैन भी चलना चाहिए जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 800 पीपीऍम से अधिक न हो  ,  ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड से मशरुम का डंठल बड़ा हो जाता है तथा छतरी छोटी रह जाती है,  बीज फैलने के लगभग के सप्ताह बाद मशरुम की छोटी छोटी कलिकाएं बनकर तैयार हो जाती है , तथा दो तीन दिन में मशरुम आपने पूर्ण आकार ले लेती है। 

How to Start Mushroom Cultivation Business मशरुम उत्पादन व्यवसाय कैसे शुरू करें।


Mushrooms मशरुम उत्पादन व्यवसाय कैसे शुरू करें।


Different Types Of Mushrooms

दोस्तों क्या आप किसी ऐसे व्यवसाय के बारे में सोच रहे है जिसे काम लागत में शुरू किया जा सके और जो रिस्क फ्री भी हो ? तो मशरुम उत्पादन आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे बहुत ही आसानी से कम लागत तथा आसानी से घर से भी शुरू किया जा सकता है, और एक बेहतरीन व्यवसाय के रूप में स्थापित किया जा सकता है।  मशरुम स्वादिष्ट होने के साथ साथ बहुत ही पोषक तत्वों से भरपूर होते है।  इस लिए आज के दौर में मशरूम तथा इससे बनने वाले उत्पादों की मांग पूरी दुनियां में काफी बढ़ चुकी है। दुनियभर  में  कई  प्रकार  की  मशरुम  की  खेती  की  जाती  है ,

मशरुम का खाद्य पदार्थो में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है , जिसमे कई प्रकार के पोस्टिक पोशाक तत्व पाए जाते है । विश्व भर में अनेक प्रकार की मशरुम का उत्पादन किया जाता है ।
जिसमे से कई खाने योग्य व कई दवाइयों आदि बनाने में इस्तेमाल की जाती है । उदहारण के लिए बटन मशरुम खाए जाने वाली मशरुम में से एक है ।
जिन्हे विशेष प्रकार की खाद बना कर उत्पादित किया जाता है ।
दोस्तो आज की भाग दौड़ की जिंदगी में उचित पोष्टिक आहार की बहुत बड़ी कमी सामने आ रही है कृषि में अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग से हमारे खाद्य पदार्थो पर जो कुप्रभाव पड़ा है यह मानव के शरीर मे बहुत ही खतरनाक जानलेवा बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है, इन कीटनाशकों के खतरनाक प्रभावों को देखते हुए आज विश्व भर में कार्बनिक खेती यानी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिला है, जो कि बहुत ही सार्थक कदम है, इसी कड़ी में एक व्यवस्याय बहुत ही तेजी से उभरता हुआ दिखाई दे रहा है, जिसमे बिना कीटनाशकों के प्रयोग से बहुत ही पोष्टिक व लाभदायक फसल प्राप्त की जा सकती है,

जिसका नाम है "मशरुम" दोस्तो मशरुम एक ऐसी विटामिन और अद्भुत गुणों से भरपूर पोष्टिक आहार है जिसकी जरूरत वर्तमान समय मे बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है मशरुम में बहुत से खनिज व विटामिन जैसे बी, डी, पोटेशियम, आर्यन, कॉपर, ओर भी कई उचित मात्रा में पाए जाते है चीन में तो इसे महा औषधि और रसायन माना जाता है। वहीं रोम के लोग मशरूम को भगवान का आहार मानते हैं।
भारत में उगने वाले मशरूम की 2 सबसे प्रसिद्ध प्रजातियां वाइट बटन मशरूम और ओईस्टर मशरुम है। जो विश्व भर में उत्पादित की जाती है भारत मे मशरुम उत्पादन की अपार संभावनाओं को देखते हुए हम आपके लिए लेकर आये है नई तकनीक व जानकारियां जिन्हें अपनाकर आप बहुत ही आसानी से वे बहुत कम निवेश में मशरूम उत्पादन का कार्य प्रारंभ कर सकते है, औऱ इसे एक व्यवसाय के रूप में अपना कर उचित मुनाफा भी कमा सकते है।

लेख पढ़े How to Grow Oyster Mushroom घर में मशरुम कैसे उगाएं 

 

 

Contact Us

नाम

ईमेल *

संदेश *